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ओगस्ट - २०१३
॥ घात ॥ नाह लघउ नाह लघउ मणुय भवराह, कुल निमलु सुगुरु गुरु । वीतराग जिण धम्म संजम, तुह दंसण पूयण न्हवण गुणह गान गिरनार उत्तम इति य चडिउ इकु हिव हित्था लंबणु दहि, जिम हेलाई हउ चडउं अइगरुइ सिवगेहि ॥३०॥ पुहवि पूरिय सहस वरिसाउ, सिरि रेइगिरि चडिय नाण ठाणि मासोपवासिय, असाढ अठमि रयणि धवल पखि मुणिगण भासिय । पंचसय छत्तीस सउ उम्मूलिय भवकंदु, सोहग-सुंदर सिद्धि-पुरि पुहतउ नेमि-जिणंदु ॥३१।।
[कलश] इय नेमि जिणवर भुवण-दिणयर वासुदेव नमंसिउं, गोमेध-अंबिक-जक्ख-जक्खिणि-विहिय-सासण-संसिउ । इगवीस-ठाणिहि सुद्ध-झाणिहि विनय भत्तिहि संथुउ, जगजणिय रीजं बोधिबीजं देहि वंछिय पूरउ ॥३२।।
॥ इति इगवीसठाणगर्भित नेमिस्तव ॥ छ ।
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