________________
ओगस्ट २०१३
सहस अट्ठारस सय-हत्थि मुणि दिक्खिया, सहस चालीस साहुणि सय - निम्मिया । इगुणसत्तरि सहस लक्खु इगु सावया, सहस छत्तीस सउ लक्ख तिनि साविया ||१७|| तम्मि रस - थुणिर- सुर-असुर - नारी - नरा, विन्नवई नाह तुह पाय सेवायरा । उल्लसिर- भकति-भर- भरिय - रोमंचिउ, मण-मणोरह भणउं नाह चिर संचिउ ॥१८॥ देव भावारिगण जे हु तुम्हि जित्तुउ, तेहि इह हउं जित्तु छउं नाह भत्तउ । करिय सेवक दया पसूय जिम सामिय, कम्मबंधाडि मेल्हाविगो सामिय ॥ १९ ॥ अनंत युगल फिरिय चउद-रज- गोचरे, जीव चतुरासियं लख गुणंतरे । तिरियगइं नरयगइ मणुयगइ सुरगई, तुम्ह दंसण विणा दुक्ख मय अणुहुई ||२०|
[ घत्ता ]
नेमि जिणवर नेमि जिणवर मोह माहप्पा हउ हीणमणु बहुकषाय विषय विगंजिय । मिच्छत्तगहगणगहिय कोडिरूप पाखंडि रंजिय ।
कुगुरु कुतित्थ कुदेव कुल कोडा कोडि भमंत, तुह सरणाई होइ करिहि बहूउ निश्चित ||२१| नयण मणि वयण तणि अमिय रसि रसियउ, देवतरु- धेणु - मणि कुंभ करि वसियउ । जम्म मह दिवस मह पुन्न मह फलियउ, अज्ज रेवंतगिरि तुम्ह जउ मिलियउ ॥ २२॥ वयगहण नाण सिव गण हउ पामिउ, तत्थ गिरि चडवि मई तुम्ह सिरु नामिउ । धरिय गरुयडि धणिय सार हव किजुउ, एग दु नवि सवे मम वि ए दिउ ||२३||
Jain Education International
२१
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org