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परम
वयणु जिण वरिस - दिण दाणु देई करी, माय-पियराण पहु अणुमन्नई अणुसरि । - संवेग-रसि-रसिय- साहसपरो, बारवई मज्झि मज्झेण जिणेसरो ||१०|| मिलिय सुर-असुर - नर कोडि-कोडी गणा, जय जयाकार भरि करइं जिणवरगुणा । मासि सावण सिए छट्टि दिणि सामिउ, चडिय रेवंतिगिरि नेमि सिवगामिउ ॥११॥ रायमइ रायमइ रायमइ रहियउ, सहस सहकार-वण सहस- जण सहियउ । लेइ संजमसिरिं नेमि जीणेसरो, छट्ठि तवि कन्नरासम्मि परमेसरो ॥१२॥ निसम निकसाय संसार - सिव- सम-मणो, बीय दिणि विहिय वरदत्त-घरि पारणो ।
दस - दिसा गंतु जग-जंतु रक्खणकए, नेमि जिण धणह दस माण करि सोहए ||१३|| मास आसोय अम्मावसी सुहदिणे,
दिवसि चउवन्न वणिय - भूरि- भवरिय - गणे । तिति उववास करि दिक्ख ठाण ठिऊ, गरुय संवेगि केवलसिरि य वरियऊ ||१४|| ॥ घात ॥
सयल सुरवर सयल सुरवर मिलिय बहुभत्ति, आणंदहिय उल्हसिय,
समवसरणु निमवई बहुपरि सिंहासणि सिंह जिम नेमिनाह उवविसइ तहि गिरि ।
जयजयकारु समुहसिय उवदंसइ जिण धम्मु,
जोजन वाणिय अमिय जिम सामिय महिमा रम् ॥ १५ ॥
धम्मदेसण सुणिय मुणिय भव जु भयं,
के विचारितु मह के वि सावय-वयं ।
के वि सम्मत्तु गिण्हति उत्तमतमं, नेमिजिण पासि गुरु- भाव - वासि समं ||१६||
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