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________________ २० परम वयणु जिण वरिस - दिण दाणु देई करी, माय-पियराण पहु अणुमन्नई अणुसरि । - संवेग-रसि-रसिय- साहसपरो, बारवई मज्झि मज्झेण जिणेसरो ||१०|| मिलिय सुर-असुर - नर कोडि-कोडी गणा, जय जयाकार भरि करइं जिणवरगुणा । मासि सावण सिए छट्टि दिणि सामिउ, चडिय रेवंतिगिरि नेमि सिवगामिउ ॥११॥ रायमइ रायमइ रायमइ रहियउ, सहस सहकार-वण सहस- जण सहियउ । लेइ संजमसिरिं नेमि जीणेसरो, छट्ठि तवि कन्नरासम्मि परमेसरो ॥१२॥ निसम निकसाय संसार - सिव- सम-मणो, बीय दिणि विहिय वरदत्त-घरि पारणो । दस - दिसा गंतु जग-जंतु रक्खणकए, नेमि जिण धणह दस माण करि सोहए ||१३|| मास आसोय अम्मावसी सुहदिणे, दिवसि चउवन्न वणिय - भूरि- भवरिय - गणे । तिति उववास करि दिक्ख ठाण ठिऊ, गरुय संवेगि केवलसिरि य वरियऊ ||१४|| ॥ घात ॥ सयल सुरवर सयल सुरवर मिलिय बहुभत्ति, आणंदहिय उल्हसिय, समवसरणु निमवई बहुपरि सिंहासणि सिंह जिम नेमिनाह उवविसइ तहि गिरि । जयजयकारु समुहसिय उवदंसइ जिण धम्मु, जोजन वाणिय अमिय जिम सामिय महिमा रम् ॥ १५ ॥ धम्मदेसण सुणिय मुणिय भव जु भयं, के विचारितु मह के वि सावय-वयं । के वि सम्मत्तु गिण्हति उत्तमतमं, नेमिजिण पासि गुरु- भाव - वासि समं ||१६|| Jain Education International अनुसन्धान-६२ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520563
Book TitleAnusandhan 2013 09 SrNo 62
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages138
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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