SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ओगस्ट - २०१३ अवर तित्तीस अवराजिए सुरभवो, करिय सोरियपुरे समुद्दविजयाधिवो । तत्थ सिवदेवि कुच्छंसि उववन्नउ, तिहुयणाणंद-सोहग्ग-संपुन्नउ ॥३।। मासि सावण सिए पंचमी-वासरे, नाह ! तुह जम्मु जगि मिलिय-सचराचरे । दिसिकुमरि सूई करइ रोमंचिया, न्हवई सुरसेलि इंदा य आणंदिया ॥४॥ पुन्निमाचंद जिम नयण-आणंदणो, संख-लंछण-चणो जणिय-जग-रंजणो । रूव-लावन्न-बलि कुणिहि न वि नामिउ, रमइ रामेण गोविंद सउं सामिउं ॥५॥ मयणभड-चूरि भडवाय-भर-भंजणो, संख सद्दिणि जरासंध बलगंजणो । वाम-भुय-दंडि हरि हेलि हिंडोलणो, धरिय-धीरिम-धुरा मेरुगिरि-तोलणो ॥६॥ भोग-भंगी-भुजंगी-परीवजु(ज्जु?)णो, साम-तणु विमल-मणु सिरिसिवा-नंदणो । ललिय-गइ ललिय-मइ ललिय-संवर वरो, तिन्नि सय वरिस घरि रहिय नेमीसरो ॥७॥ मिलिय-जदुवंस-नरनारि-रंजणकए, गरुय-विछडि वीवाहु वरि चल्लुए । पसुय-गण पिखि करुणा-परो वलियउ, सरभु केणा वि किं बंधणिहिं कलियउ ॥८॥ समय जाणवि लोगंतिया आगया, नमवि नेमिजिणु विन्नवइ देवया । धम्मवर तित्थु जगिनाह तुम्हि पयडउ, सूरि जिम मोह-अंधारउ फेडउ ।।९।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520563
Book TitleAnusandhan 2013 09 SrNo 62
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages138
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy