________________
अनुसन्धान-६२
मोहभर कामभर लोभभर भरियउ उदरभर रागभर कामभर पूरिउ । एह परि भरहखित्तंमि मं सामिय, सार करि सार करि तारिगो सामिय ॥१८॥ भोगपद राजपद नाणपद संपदं, चक्किपद इंदपद जाव परमं पदं । तुज्झ भत्तीइ सव्वं पि संपज्जुए, एह माहप्पु तुह सयलि जगि गज्जुए ॥१९।। तुहुं जि गति तुहुं जि मति तुहं जि मम जीवनं, तात तउं परमगुरु कम्ममलपावनं । कम्मकर विनयपह जोडि कर वीनवं, देहि मे अलजया दंसणं अभिनवं ॥२०॥ इय भवण-भूषण दलीय-दूषण सव्व-लक्खण-मंडणो, मद-मान-मंजण मोह-भंजण वाम-काम-विहंडणो । सुरराय-रंजण नाण-दसण-चरण-गुण-जय-नायगो, जिननाहु भवि भवि तात भव मे बोधिबीजह दायगो ॥२१॥
इति श्री सीमन्धरस्वामि स्तवनं ॥
(२) ॥ इगवीस स्थान गर्भित नेमि जिनस्तव ॥ सयल-जग-ललिय-लावण्ण-सोभावहं, नमवि सिरि-नेमि-जिण-पाय-पंकय-महं । थुणिसु तस चरिय बहु भत्ति-भर-पूरिउ, मणि वयणि काइ आणंदि अंकूरिउं ॥१॥ नाण-विन्नाण-घण-झाण-दंसण-गुणा, करण-दम-चरण-परिचरण-धी-धीरणा । सयल फलवंतु किरि होइ य(भ)वियण-जणे, तात ! तुह थुणण-रस-रसिय-निय-निय-मणे ॥२॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org