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समजाय छे. ४०थी ४७ पद्योमां त्यां थयेला धर्मकार्योनुं पण निरूपण छे. ते पछीनां ९ चित्र-पद्योमा विजयप्रभसूरि-गुरुर्नु मनभावन वर्णन छे. अने त्यार पछीनां ३१ पद्यो, गुरुनी स्थिरता छे ते 'मेदिनीपुर' नगरनां वर्णननां छे. हरिणी छन्दमां चालेलं आ नगरवर्णन कविनी प्रतिभाना श्रेष्ठ उन्मेषनां दर्शन करावी जाय छे.
आ पत्रना अधिकारो घणा गुंचवाडा सर्जे तेवा लाग्या छे. एम पण बने के आ एक पत्रमा बे पत्रोनी भेळसेळ थई गई होय ! चोक्कस साधनना अभावमा स्पष्ट भेद न पडी शकतो होई वाचना अने अधिकारो जेमना तेम रहेवा दीधा छे.
फरीथी, हवे, नगरवर्णन शरु थाय छे. ३२ पद्योना ते वर्णनमां शिवपुरी, अयोध्या तथा उज्जयिनी एम ३ नगरनां नाम छे. एम लागे के मेदिनीपुर, ज वर्णन कवि करतां होय अने तेने आ ३ नगरो साथे सरखावतां होय ! अथवा तो आ वर्णन 'अयोध्या'नुं पण होई शके. ३२ मा पद्यमां अयोध्या- विशेषण "या राममन्दिरमनोहरपार्श्वमध्या'' ए ऐतिहासिक दृष्टिए बहु महत्त्व- जणाय छे. तो पद्य ५-६मां ढुण्ढकमतीओना पराभवनो उल्लेख पण नोंधपात्र छे.
पछीनां ४ पद्योमा मेघविजय द्वारा विज्ञप्ति-रचनानी वात छे. ते पछीनां १६+२१ पद्योमां वळी नगरवर्णना छे. तेमांनां १३-१४ पद्योमां 'रामपुर' एवं नाम जोवामां आवे छे, जे कदाच अयोध्या माटे होय. २२ थी ३८ पद्योमा ते पुरमा थयेल सत्कार्योनुं वर्णन छे, जेमां पर्युषण, अमारिप्रवर्तनादि वातो छे, ते पछी छेल्लां ३६ पद्योमां गुरुराज-वर्णन छे. छेल्ला, त्रुटक पद्यमां गुरुने वन्दनानुं निवेदन थयुं छे. सौथी नीचे ते पत्रना मूळ स्थान आदि विषे संकेत तेनां प्रतिलिपिकारे आपी दीधो छे.
__ जे हो ते, परंतु आ पत्र द्वारा कविनी कविप्रतिभा सुपेरे जळहळती अनुभवी शकाय छे, ते निःशङ्क छे.
(पत्र ३) आ पत्र सम्भवतः एक स्वतन्त्र विज्ञप्तिपत्रना अंश रूप लागे छे. उपाध्याय मेघविजयजीए लखेल होवानुं जणातो आ पत्रांश, चित्रकोश-पत्रकाव्यना ज एक भागरूपे, श्रीविनयसागरमहोदये लख्यो होय तेम जणायुं छे. तेनी प्राप्ति
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