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पण, तेथी, चित्रकोशकाव्य साथे ज थई छे. अहीं तेना बे अंशो छे, तेमां प्रथम २८ पद्यात्मक अंशमां पत्रलेखक ज्यां हशे ते नगरमां थयेल धर्मकार्योनुं वर्णन छे. तेमां प्रभातनुं वर्णन ध्यानाकर्षक छे. बीजो अंश त्रुटित, २१ पद्यो जेटलोज छे, तेमां गुरुवर्णन थयुं छे. तेमां छेल्ला आपेला टिप्पणमांनां बे. पद्योमा कविए स्वरचित 'पार्श्वनाथस्तव'नो हवालो आपी, चन्द्रनी तथा रात्रिनी उपमाओ ते स्तव थकी जाणी लेवानुं सूचव्युं छे, जे कविनी अलङ्कारप्रियता दर्शावी जाय छे.
(पत्र ४) ___ आ पत्र सूर्यपुर (-सूरत) बिराजमान भट्टारक श्रीविजयसेनसूरिजी म. पर वैजलपुर (-प्रायः अमदावाद-वेजलपुर)थी विद्याविजयजीओ पाठव्यो छे. पत्रमा श्रीविजयसेनसूरिजी म.नो नामोल्लेख नथी. सूरीश, तात जेवा सामान्य शब्दोथी ज व्यक्तिनिर्देश थयो छे. परन्तु पत्रगत ५५मा श्लोकमां म्लेच्छ राजाओने प्रतिबोध करवानो निर्देश, सूरीश्वरना सहवर्ती साधुओमां उपा. नन्दिविजयजीनो उल्लेख, पत्रना पाछळना भागमां लखेलां स्तोत्रोमां विजयसेनसूरिजीनी कृपाना उल्लेखो व. ने आधारे पत्र श्रीविजयसेनसूरिजी म. पर लखायो छे तेवू अनुमान कर्यु छे. पत्र कया वर्षमां लखायो छे ते पण साक्षात् उल्लिखित न होवाथी अनुमान ज करवानुं रहे छे. नन्दिविजयजी सं. १६५६मां उपाध्याय बन्या छे अने विजयसेनसूरिजी सं. १६७२मां काळधर्म पाम्या छे. तेथी ते वच्चेना कोई वर्षमां आ पत्र लखायो हशे.
पत्र ते युगना जैन साधुसमाजमा प्रवर्तती विद्वत्तानी झांखी करावे तेवो छे. शार्दूलविक्रीडित छन्दमा ८० श्लोकोमां आ पत्र रचायों छे. एक ज छन्दनुं आटलुं निर्वहता कर्ता- असाधारण कौशल दर्शावे छे. पत्रना प्रारम्भे करवामां आवेली कलिकुण्ड पार्श्वनाथनी स्तुति वेजलपुरमां तेमना जिनालयनी सूचक लागे छे. वीरधवल राजानी पट्टराणीओ वैजलदेवी अने जैतलदेवीओ अनुक्रमे वैजलपुर अने जैतलपुर वसाव्या होवानो उल्लेख दर्भावती (-डभोई)नी दुर्ग प्रशस्तिमां छे तेवी ऐतिहासिक हकीकत पत्रमा ३६मा श्लोकनी टिप्पणमां नोंधाई छे. आ नगरो अत्यारना वेजलपुर (अमदावाद) अने जेतलपुर (बारेजा पासे) होई शके.
पत्र कागळना लांबा वींटा (a scroll) पर सुंदर अक्षरोमां लखायो छे. पत्रना पाछळना लगभग अडधा भागमां गरबडिया अक्षरोमां ७ स्तोत्रो
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