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३११मा पद्यमां उदयविजयतुं नाम जोवा मळे छे. श्लोकगत पदो जोतां एम जणाय छे के आ पत्नी रचनामां तेमनो सिंहफाळो हशे अथवा तो आ पत्र तेमणे लख्यो हशे.
प्रान्त पुष्पिकामां आ पत्रने 'लेखराजहंस' एवा नामे वर्णव्यो होई अहीं शीर्षकमां ते ज नाम स्वीकार्यु छे.
पत्रमा ४२ थी ६९ पद्यो तेमज १५५ थी २७३ पद्यो तो बन्धकाव्यो छे, जे विकट काव्यप्रतिभा होय तो ज रची शकाय. ए रीते आ पत्र खूब समृद्ध गणाय. आ बन्धचित्रो पण बनावडावी मूकवानो उत्साह हतो. परन्तु ते हवे भविष्यमां क्यारेक.
(पत्र २) आ पत्रनुं नाम 'चित्रकोशकाव्य' छे. गच्छपति विजयप्रभसूरि उपर उपाध्याय श्रीमेघविजय गणिए लखेल आ विज्ञप्तिपत्रनी एक जूनी जर्जरितप्राय प्रतिलिपि (नकल) श्रीविनयसागरमहोदय तरफथी मुनिश्रीसुयश-सुजसचन्द्रविजयजीने प्राप्त थई हती. ते बे मुनिओए ते नकल अमने प्रस्तुत अंक माटे आपी, तेना आधारे ते अत्रे आपवामां आवेल छे. अशुद्धता होवानो पूरो सम्भव छे. पण मूळ पत्र न मळे त्यां सुधी पूरतुं शुद्धीकरण अशक्य ज छे.
पत्रमा क्यांय "चित्रकोश' शब्दनो निर्देश नथी, छतां तेवू नाम, सम्भवतः विनयसागरजीए, आप्युं होय, ते पाछळनो आशय एवो लागे छे के आ २३७ पद्यप्रमाण, विद्वत्तासभर पत्रकाव्यमां पण अनेक पद्यो चित्रकाव्यो छे, तेथी ज तेने आवी ओळख आपी होवी जोईए.
प्रथम २२ पद्योमां जिनस्तवना छे, तेमां २१ पद्य चित्रकाव्यो छे. तेमांये प्रथम पद्य तो महायमकालङ्कारकाव्यरूप तेमज सटीक छे. आ टीका पत्रलेखके ज रची होवानुं मानी शकाय.
ए पछीना ४ पद्यो गुरुवर्णनना होवानुं लख्युं छे. वास्तवमां आ ४ पद्यो, पछीथी आवनारा परमगुरुवर्णनाधिकारमा होवा घटे. परन्तु प्रतिलिपिकारे आ स्थळे मूक्यां छे, तेथी ते जेमनां तेम राख्यां छे. मूळ पत्र जडी आवे तो ज आ बाबत स्पष्ट थाय. द्वितीय अधिकारमा अनेक चित्रकाव्यो साथेनां ४७ पद्योमां सादडी नगरनुं वर्णन थयुं छे. पत्रलेखक सादडीमां स्थित होवार्नु
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