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________________ जून - २०१२ ३५ केटलांक दार्शनिक प्रकरणो - सं. मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय न्यायविद्या माटे 'क्षणादूर्ध्वमतार्किकाः' ओ उक्ति प्रचलित छे. न्याय विद्याने वीसराई जतां वार नथी लागती ओवो आ उक्तिनो भाव छे. आ वातनी यथार्थतानी प्रतीति लगभग दरेक अभ्यासीने थती ज होय छे. स्वाभाविक छे के आ परिस्थितिमां न्यायविद्याने टकावी राखवा अने लेखित रूप आपवू जरूरी बने. आ कारणथी न्यायविद्याना प्रायः प्रत्येक अभ्यासी पोताना के बीजाना अभ्यास माटे दार्शनिक-नैयायिक प्रकरणो, महत्त्वपूर्ण युक्तिओ, ग्रन्थोना अंशो व. लखता-लखावता हता. स्वयं उपाध्याय श्रीयशोविजयजी भगवन्ते स्वहस्ते लखेलां आवां सङ्ग्राहक पत्रो मळे छे. अभ्यासीओ द्वारा सगृहीत आq न्याय-दार्शनिक साहित्य फंफोसतां अमांथी केटलीक वार महत्त्वपूर्ण सामग्री जडी आवे छे. प्रस्तुत प्रकरणो आवा ज कोईक अभ्यासी द्वारा सङ्ग्रहीत लागे छे. सङ्ग्रहकारे २१ पानानी प्रतमा समावेली सामग्री आ मुजब छे - १. षड्दर्शननिर्णय (-अञ्चलगच्छीय मेरुतुङ्गसूरिजी) २. सर्वज्ञसिद्धि (-अजितसिंहसूरिजी) ३. सर्वज्ञाभावनिराकरण ४. अग्निशीतत्वस्थापना ५. धर्मस्थापनस्थल ६. सर्वज्ञव्यवस्थापन ७. चार्वाकोऽध्यक्षमेकं... ओ श्लोक ८. वागर्थसंस्थापन ९. अष्टधाऽनुपलब्धि १०. वज्रशूचीप्रकरण (-बौद्धाचार्य अश्वघोष) ११. सर्वज्ञसिद्धि (द्वितीय) १२. प्रदीपनित्यत्वव्यवस्थापन १३. व्योम्नो नित्यानित्यत्वव्यवस्थापन १४. प्रमाणसाधनोपायनिरास १५. अष्टधाऽनुपलब्धि (पुनरावर्तित). आमांथी घणीखरी कृतिओनो कर्ता अज्ञात छे. आ प्रत पूज्य गुरुभगवन्त आ. श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी म. ना निजी सङ्ग्रहनी छे. प्रत कुल २१ पानानी छे, पण पत्र नं. १७-१८ अमां नथी. तेथी 'सर्वज्ञसिद्धि (द्वितीय)'ना आदि-अन्त ज आ प्रतमां मळे छे. प्रत प्रमाणमां ठीक गणी शकाय तेवा अकसरखा अक्षरोमां लखायेली छे. प्रतना लेखके पोतानुं नाम सूचव्युं नथी. फक्त अग्निशीतत्वस्थापनाने अन्ते “अग्निशीतत्वस्थापनावादः पं. साधुरत्नगणिना स्ववचनाय लिखितः" ओवी नोंध मळे छे.
SR No.520560
Book TitleAnusandhan 2012 07 SrNo 59
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages161
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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