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________________ अनुसन्धान-५९ प्र० ॥ जगत् कोणे जित्युं छे ॥ ? उ० ॥ सत्य तितिक्षावान् पुरुषे ॥ प्र० ॥ सुर वंदनीय कोण छे ॥ ? उ० ॥ परिपूर्ण दयाधर्म पालनार ॥ प्र० ॥ बुद्धिमान कोनाथी भय पामे ॥ ? उ० ॥ संसारारण्यथी ॥ प्र० ॥ प्राणीयो कोने वश करे छे ॥ ? उ० ॥ सत्य अने प्रिय वाक्य कहेनारने ॥ तथा विनयवान ते (ने) ॥ प्र० ॥ सुजनने क्यां ऊभुं रहेवू ॥ ? उ० ॥ लाभालाभनो विचार छोडी न्यायमार्गमां ऊभं (भुं) रहेवू ॥ प्र० ॥ विजली समान शुं छे ॥ ? उ० ॥ दुर्जनसंगति अने युवति जननी प्रीति ॥ प्र० ॥ कया युगमां सुमनुष्यनी पण मति दुःशील आचरण करवामां तत्पर थाय छे ॥ ? उ० ॥ कलियुगमां ॥ प्र० ॥ शोचनीय शुं छे ॥ ? उ० ॥ कार्पण्य ॥ प्र० ॥ धनी, शुं प्रशंसनीय छे ॥ ? उ० ॥ औदार्य ॥ प्र० ॥ पराभव पामेला अने निर्धन- शुं प्रशंसनीय छे ॥ ? उ० ॥ सहनशीलपणुं ॥ इति प्रश्नोत्तर वाक्यरत्नसङ्ग्रहः समाप्तः ॥ ॥ शुभं भवतु ॥ कल्याणमस्तु ॥ श्रीरस्तु ॥ छ सं. १९५९ छ
SR No.520560
Book TitleAnusandhan 2012 07 SrNo 59
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages161
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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