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________________ जून - २०१२ १४७ दोभासु आखी रचना आर्या छन्दमां छे. श्लो. २७मां 'अर्णोधा' छे ते 'अरणोट्टा' होवानो सम्भव छे. 'नेमिनाथ स्तवन' तेमांनी भाषानी दृष्टिए १८मी सदीना अन्तभागनी रचना जणाय छे. फुटकळ कृतिओमां एक हरियाळी छे तेनो उत्तर 'शत्रुञ्जय पर्वत' छे. नवतत्त्व प्रकरण आधारित बे चोपाई आ अंकमां छे. देवचन्द्रजी कृत चोपाईनी एक प्रत १७००मां लखेली मळे छे तेथी तेनी रचना ३६८ वर्ष पूर्वेनी समजाय छे. आणन्दवर्धन कृत चोपाइ साड़ा चारसो वर्ष जूनी छे. आ चोपाइनां थोड़ा संमार्जनयोग्य स्थान – क. २४ छाणयोनि गणयोनि क. १३४ जुधं धूणइ जु धंधूणइ क. १६६ नु इह नुहइ (न होय) क. १६६ अलकसमलकस अलकस-मलकस क. १७८ दो भासु क. १७९ वूस्तह लावद् वू(ह)स्त हलावइ क. १९३ स्नान नवायु | स्नान न वायु क. २२६ आस दिइ आस[न] दिइ शब्दकोशमां ‘परीखा' (२०६)नो अर्थ 'खाई' बताव्यो छे, परन्तु वास्तवमां 'पुरीष'- भ्रष्ट रूप 'परीखा' थयुं छे, माटे परीखा = मळ, विष्टा थाय. रेवणी (२५४) = रहेनार नहि पण रहेवू, वास एवो अर्थ थाय. क. २३०मां 'कुदली' छपायुं छे ते भ्रान्त पाठ छे. आखुं चरण आम वांचq जोइतुं हतुं : 'श्रम हाथउ, कर्म संकु (?) दली'. तपरूपी घंटीमां कर्म दळवानी वात छे. 'सुंकु' पाठ शंकास्पद तो रहे ज छे. ह.प्र. चोकसाईथी तपासवी पड़े. 'जुधं धूणइ (१३४)ने पण आ रीते वांचवाथी अर्थ बेसे : 'जु धंधूणइ'. अने आम वांचतां 'धंधूणइ' एक नवो शब्द मळे छे, जे म.गू.कोशमां नोंधायो नथी. त्यां धंधोलिय, धंधोलq जेवां रूपो नोंधायां छे, एमां आ एक वधु रूप उमेराय छे. 'अलकसमलक सयेलु' (१६६) - ए पण खोटुं वंचायुं छे. 'अलकसमलकस मेलु' - एम वांचवें जोइए. 'अलक-मलक'नुं आ जूनुं रूप अहीं सांपडे छे.
SR No.520560
Book TitleAnusandhan 2012 07 SrNo 59
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages161
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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