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अनुसन्धान-५९
चक्कवइ म देइ'. क. ३८मां 'लईणइं' अशुद्ध भासे छे. 'लइ ईणइं' होइ शके. लेखक दोषथी लइणइ थयुं होय. क. २४मां 'चउरा' छे त्यां 'चउरी' होई शके; दीर्घ ईकारान्त शब्द आकारान्तनो भ्रम सर्जी शके छे. जो 'चउरी' होय तो 'चउरी गूडर संघतणा' - संघना मण्डप अने तम्बू - एवो अर्थ पण बेसे.
म.गू.को.मां न नोंधाया होय एवा शब्दो आ रचनामां देखा दे छे. मध्यकालीन गूजराती कृतिओनां सम्पादन वखते म.गू.कोशना उपयोगने सम्पादकोए अनिवार्य समजवो जोइए, जेथी कृतिनो पाठ स्पष्ट थाय, अने घणी वार कोशमां आवरी न शकाया होय एवा नवा शब्दो मळी आवे तो मध्यकालीन शब्दसमृद्धिमां एटलो वधारो थाय.
___ कृतिनो शब्दकोश तैयार करती वखते शब्दनी साथे श्लोक, कड़ी के पंक्तिनो क्रमांक लखवो जरूरी छे. ए विना विद्यार्थी के अभ्यासीने ए शब्द- स्थान शोधवामां मुश्केली पडे. प्रस्तुत कृतिमां आवा क्रमांक शब्दनी साथे अपाया नथी.
शब्दकोशमां उमेरवा जेवा थोडा शब्दोआलि (४) मस्ती, तोफान सारि (१२) द्यूत थिआ (६) रहेनार, रहेलुं धामी (२३) धार्मिक, श्रावक पिआरी (१८) पराई
धामिणि (२७) श्राविका वालीनाह अने परहडा - आ बे व्यक्तिनामो जणाय छे. (९मी कड़ी). हिंसाप्रिय देव अथवा कोई क्रूर व्यक्तिओ होय, अने कुमारपाळे तेमने सुधार्या होय एवो सम्भव छे. वालीनाह विशे 'अनुसन्धान'मां अगाउ श्रीशीलचन्द्रसूरि तरफथी कोई नोंध छपायानुं स्मरणमां छे. 'पडण' ए पडह नथी. पुडणा (क. ८) तथा पडण (९ तथा ११)- आ बे शब्दो बलि अथवा जीवहत्याना अर्थमां होय एवो सम्भव छे. क. ३७मां नो 'मोगउ' शब्द विशिष्ट छे. कुमारपाळे अपुत्रिया- धन लेवानुं बंध करेलुं तेनो उल्लेख जो अहीं थयो होय तो मोगउ = अपुत्रियानुं धन थाय. 'गूडर' (२४) पगलां नथी ज, तंबू होइ शके.
'ओसवाल गोत्र कवित्त' सामाजिक इतिहास माटे दस्तावेजी साधनरूप कृति छे. रचनार कोई विद्वान मुनि जणाय छे. नाम कवित्तनुं आप्युं छे पण