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________________ जून २०१२ - १४५ आ अंकनी एक विशिष्ट अने रसिक कृति छे : 'कुमारपाल रास'. भावुक उद्गार तथा प्रत्यक्षदृष्ट होय तेवुं वर्णन सूचवे छे के कां तो कवि कुमारपालनी नजीकना समयना होय ने कां तो हेमसूरिनी परम्परा साथे सम्बन्धमां होय. कृतिनी भाषा अपभ्रंशनी निकटता दर्शावे छे. 'स्यां चेटोऽपि दरिद्रोऽपि' ए श्लोकनी वात ३२मी कड़ीमां गूंथी लेवाइ छे : 'जहिं कुलि तइं नो लखउ तिहिं चक्कवइ म देउ'. कुमारपालनी ‘अमारी', व्यसननिषेध, शत्रुञ्जयना संघ वगेरेनी वात कवि उलट अने उमळकाथी करे छे. कविए पोताना गुरु सोमतिलकसूरिनो उल्लेख कर्यो छे. सम्पादक मुनिद्वयने विनन्ति के आ नामना आधारे कविना समयनो निर्णय करवानो प्रयास करे. देशी भाषाओनी कृतिओनुं सम्पादन, एक रीते, संस्कृत - प्राकृतादि भाषाओनी अपेक्षाए कठिन छे. कारण के उच्चार, जोड़णी, व्याकरण वगेरे सैके सैके अने स्थलविशेषे बदलाया करतां होय छे. ध्यानपूर्वक अने सूझसमज साथे वाचन न थाय तो भाषाना तत्कालीन स्वरूपने हानि पहोंचे. कोई पण कृतिना मूळ भाषास्वरूप सुधी पहोंचवुं ए सम्पादक- संशोधकनुं मुख्य कर्तव्य बनी रहे छे. प्रस्तुत रचनामां गुजराती भाषानुं जूनुं रूप समायुं छे. सम्पादकोए काळजीभर्युं सम्पादन कर्तुं छे तो पण केटलांक स्थानोए अशुद्ध वाचन थयुं छे. क. ७मां धाउ छपायुं छे. अहीं साचो शब्द घाउ छे. आ शब्द आ ज अर्थमां ११मी कडीमां पण छे. क. ८मां उसावग जेवो शब्द भ्रमवश सर्जायो जणाय छे. मूळमां पाठ कंइक आवो होवानी शक्यता छे : 'ए तु भइउ सावग'. जूनी प्रतोमां 'तु' अक्षर 'उ'नो भ्रम थाय एवी ढबे लखातो हतो. क. ११ 'जांमे इणिहि' पण भ्रान्त पाठ छे. 'रात करई जां मेइणिहिं कुमरड रायह राय' आम वांचवाथी अर्थ बराबर बेसे छे. क. १८मां 'करिन' छे ते 'करि-न' (कर ने !) एम वांचवानो छे. ए ज कडीमां 'मन सिद्धिइं' छे त्यां 'मनसुद्धिइं' वधु संगत थाय, छतां ह.प्र.मां 'सिद्धिइं' ज होय तो (सु) आम कौंसमां सम्भवित पाठ बतावी शकाय. क. २४मां 'चालिउ ( ? ) ' एम प्रश्नचिह्न मूक्युं छे, पण तेवी जरूर नथी. कथन स्पष्ट छे : 'चालिउ नरवर सुरठभणी'. क. ३२मां त्रीजी पंक्ति आम वांचवी जोड़ती हती : 'जहिं कुलि त नो लखउ, तिहिं -
SR No.520560
Book TitleAnusandhan 2012 07 SrNo 59
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages161
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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