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________________ १४४ विहंगावलोकन अनुसन्धान-५९ उपा. भुवनचन्द्र अनुसन्धान-५७ वीतरागस्तवन नामक संस्कृत स्तुति भाववाही अने प्रासादिक छे. हृदयमां भाव जन्माववा माटे भिन्न भिन्न भावभङ्गी अने कथनशैलीथी रचायेलां स्तोत्रो उपकारक थतां होय छे. प्रस्तुत रचना पण ए तथ्यनुं सुपेरे निर्वहण करे छे. ‘आदिनाथ नमस्कार' अपभ्रंश पछी अने गूर्जरना उदयकाळनी रचना जणाय छे. हस्तप्रतना वाचनमां थोड़ी भ्रान्ति थई छे. क. ३मां 'छेल' छे त्यां ‘छल' योग्य रहे; ‘छलछद्म' एवो शब्दसमूह प्रसिद्ध पण छे. ए ज कडीमां आगळ 'भूख उस' (? उर? ) ' एम छे त्यां 'उस'ना स्थाने 'तुस' होवानी कल्पना सहेजे थाय. अहीं भूख - तरसनां दुःखनो उल्लेख छे. जूनी लिपिमां ‘तु’ अने उ वच्चे भ्रान्ति थाय एवी रीते ए बे अक्षर लखाता. क. ४मां 'न करइ ' छे त्यां 'न ठरइ' वधारे बंधबेसता थाय. ए ज कड़ीमां 'लबध' छे ते लुबध हशे. आ ज कड़ीमां ‘अट्टडाय' शब्द छे. सम्पादक तेनो अर्थ 'अथड़ाय' एवो सूचवे छे पण अहीं सन्दर्भ दुष्टचिन्तननो छे, आथी 'अट्ट झाइ' जेवो पाठ होवानो सम्भव वधु छे. 'उम्मरवाडी पार्श्वनाथ प्रशस्ति' ऐतिहासिक महत्त्व धरावे छे. आ जिनालयमां अन्य कोई पार्श्वनाथनी प्रतिमाजीनी प्रतिष्ठा थई होय तो तेनी प्रशस्ति उम्मरवाडी पार्श्वनाथना नामे रचाय नहि; आथी जिनालयनो जीर्णोद्धार थयो होय अने पछी मुख्य उमरवाडी पार्श्वनाथ भगवाननी प्रतिष्ठा थई होय ते समयनी आ प्रशस्ति छे एम मानवुं उचित जणाय छे. प्रशस्तिमां एक ज बिम्बनो उल्लेख छे ते, ए भगवाननी मुख्यताना कारणे थयो होय एम बने. ‘एक अनुकरणात्मक स्तुति' पठनीय छे. थोड़ी कृत्रिमता जणाय छे, पण अनुकरणात्मक कृति तरीके ते रसप्रद छे. श्लो. १३मां 'धर्म' छे त्यां 'धर्मे' होवुं घटे.
SR No.520560
Book TitleAnusandhan 2012 07 SrNo 59
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages161
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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