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अनुसन्धान-५९
शास्त्रीय पदार्थोना परिशीलननी नीपज रूपे, मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजयजीनो मरणना प्रकार विषे तथा ३४ अतिशयो विषेनो ऊहापोह अभ्यासीओने आनन्ददायक बनशे. हस्तप्रतिओ प्राप्त करवानी मुश्केली, लहियाओना लेखनदोषो, भाषागत परिवर्तनो वगेरेना कारणे महान श्रुतधर भगवन्तोने पण व्याख्या करती वखते {झवण वेठवानी आवी छे. आजे विविध क्षेत्रे संशोधनो थइने घणां तथ्यो स्पष्ट थया छे, हस्तप्रतोनी जाणकारी अने उपलब्धि अपेक्षाकृत सुलभ बनी छे, तेथी घणी वातो स्पष्टीकरण पामे छे. अहीं पण आq ज बन्युं छे. लिपिकार द्वारा थयेली लेखनभूलना कारणे तथा 'त' श्रुतिवाळा उच्चारो तरफ ध्यान नहीं जवाना कारणे वादिवेताल शान्तिसूरि जेवा महान शास्त्रकारे जे गाथानी व्याख्या करवानुं मुलतवी राख्युं ते गाथा मुनिश्री द्वारा स्पष्ट थवा पामी छे. 'तब्भवमरणेण णेयव्वा' नो अर्थ 'तद्भव मरण कह्या छे' एवो न ज थई शके, परन्तु 'तद्भव मरण प्रमाणे जाणवा' एवो जरूर थई शके. मुनिश्रीनो आ तर्क पण साचो छे.
अतिशयोनी गणतरी आगमकाळे जुदी रीते थती हती, पछी तेमां परिवर्तनो थयां छे – ए वात मुनिश्रीए करेला तुलनात्मक विवरणथी स्पष्ट थाय छे. चाली आवती मान्यताथी जुदी पडनारी आवी वातो घणाने अग्राह्य के अश्रद्धेय थई पड़े एवो सम्भव छे, परंतु तटस्थ अने तुलनात्मक अभ्यासना निष्कर्षरूपे सामे आवतां तथ्योथी अकलाइ जq ए पण एक प्रकारनी दुर्बलता छे. सत्यान्वेषी-गवेषी जन एनाथी मुक्त रहे छे. पूर्वाचार्योए एवां सूत्रो के पाठोने यथातथ राख्या-सुधारी के उडाड़ी न मूक्या ते तेमनी तथ्यपरक के तथ्यप्रतिबद्ध दृष्टिनो जीवतो-जागतो पूरावो छे. अनुसन्धान ५८
श्री अमृत पटेल द्वारा सम्पादित थयेलां स्तम्भनक पार्श्वनाथ भ.नां त्रण स्तोत्र आ अंकमां छे. अज्ञातकर्तृक स्तोत्रना श्लो.२मां एक अक्षर खूटे छे ते माटे सम्पादके पाठमां सुधारो सूचव्यो छे, परंतु, तेने माटे श्लोकना बीजा उपलब्ध शब्दोमां पण फेरफार सूचव्यो छे. त्रुटित पाठनी पूर्ति माटे पाठना बीजा स्पष्ट प्राप्त अक्षरो/शब्दोमां घणो बधो फेरफार करवो पड़तो होय तो एवो सुधारो इष्ट न गणवो जोइए. प्रस्तुत पाठमां, अन्य शब्दोने स्पर्श कर्या वगर