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________________ फेब्रुआरी - 2012 169 नथी ते नवाई पमाडे तेवी वात छे. श्रीकुलचन्द्रसूरिजीओ अवचूरिस्वरूप आ टीका रचीने आ कमी दूर करवानो स्तुत्य प्रयास को छे. टीकामां मुख्यत्वे शब्दार्थ आपवामां आव्यो छे तथा सम्बन्धित विषयने लगती चर्चाओ, आगमोनी चूर्णि, टीका व. ने आधारे करवामां आवी छे. टीका संक्षिप्त होवाथी घणे ठेकाणे अर्थ सन्दिग्ध रहे छे. केटलाक स्थळे अर्थ बदलवा जेवो पण जणाय छे. छतां पण पठन-पाठनमा प्रायः अप्रचलित आ ग्रन्थने आ रीते प्रकाशमां लावी टीकाकारे उत्तम श्रुतसेवा करी छे ते निःशङ्क छे. 5. सिद्धहेमशब्दानुशासन-बृहद्वत्ति-ढुण्डिका - सं.- मुनि विमलकीर्तिविजय, प्र.- क.स. श्रीहेमचन्द्राचार्य न.ज.स्मृ.सं.शि. निधि - अमदावाद, वि.सं. 2067 संस्कृतव्याकरणना अभ्यासीओ माटे उपयोगी आ ग्रन्थना वधु बे भाग प्रकाशित थया छे. भाग 3 - अध्याय 3.2 थी 4.1, भाग 4 - अध्याय 4.2 थी 4.4.
SR No.520559
Book TitleAnusandhan 2012 03 SrNo 58
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages175
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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