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________________ १६८ अनुसन्धान-५८ करी रचायेल". आ उमेरण पाछळ तेना रचनार वगेरेनो आशय, कदाच, शुद्ध के सारो होई शके तेवुं स्वीकार्या पछी पण, आ रीतना उमेरा करवानी तथा सज्झायने पूजामां फेरववानी चेष्टा अयोग्य तेमज अनधिकृत छे, तेवुं कह्या सिवाय रहेवाय तेम नथी. - • उपाध्यायजी सज्झायने बदले पूजा बनावी शक्या होत. • उपाध्यायजीनी रचनामा उमेरो करवानो मतलब एटलो ज थाय के तेमणे अधूरुं छोड्युं हशे अथवा पूर्ण प्रतिपादन करतां नहि फाव्युं होय. आवो अर्थ कोई काढे तो तेमां तेनो दोष न गणाय. वास्तवमां आवा उमेरा करवा ते महापुरुषनी अवहेलना ज बनी रहे. • ५, ८, १७, २१, १०८ प्रकारी पूजाओना प्रकारो शास्त्रोमां उपलब्ध छे. १२ प्रकारी पूजाने कयो आधार हशे ? ते प्रश्न पण रहे ज छे. • जे रचनामां जिनभक्ति के पूजाने लगतो कोईज पदार्थ न होय, केवल स्वाध्यायलक्षी ज रचना होय, तेने जिन - पूजानुं रूप आपी देवुं ते तो रचना प्रत्ये थता गेरव्यवहार - समान लागे छे. • भविष्यमां आवी रचनाओनो व्यापक उपयोग थाय तो मूल रचयिता गौण बनी जाय अने उमेरा करनारनुं महत्त्व वधी जाय तो ते प्रज्ञापराध ज गणाय. • पूजा रचवी ज होय तो ६७ बोलने केन्द्रमां राखीने स्वतन्त्र रचना जरूर करी शकाय छे. परन्तु उपाध्यायजीनी रचना साथे आवी चेष्टा करवी उचित नथी, संघ के सम्बन्धित वर्ग माटे हितावह पण नथी. ४. विशेष - णवति - (अक्षरगमनिका - टीकासहित) कर्ता श्रीजिनभद्रगणि, टीका– श्रीविजयकुलचन्द्रसूरिजी, प्र. - दिव्यदर्शन ट्रस्ट, धोळका, वि.सं. २०६७ ग्रन्थनुं नाम ज जणावे छे तेम आमां सैद्धान्तिक, कार्मग्रन्थिक, आचारविचारविषयक व. ९० जेटला विशेष मुद्दाओ पर चर्चा करवामां आवी छे. लगभग १४०० वर्ष जूनी रचना होवा छतां, ग्रन्थ पर कोई टीका उपलब्ध
SR No.520559
Book TitleAnusandhan 2012 03 SrNo 58
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages175
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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