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________________ १२८ अनुसन्धान-५७ शतकमां विद्यमान श्रीगुणपालगणिए करी छे. बीजी बे रचनाओ पण पद्यबद्ध ज छे, परन्तु ते संस्कृतमां रचाई छे, तथा तेना कर्ता अज्ञातप्राय छे. सम्पादकोनी नोंध प्रमाणे, बीजी रचना १५मा-१६मा शतकनी, अने त्रीजी रचना १३मा-१४मा शतकनी (१३३४ पूर्वेनी) जणाय छे. परिशिष्टरूपे ऋषिदत्तानां वसुदेवहिण्डी, आख्यानकमणिकोश तथा शीलोपदेशमाला-वृत्तिमां आलेखायेल ऋषिदत्ताचरित्रो आपेल छे. ऋषिदत्ताकथाना विकास, अध्ययन के पछी अन्य कोई पण प्रकारे तेनुं अध्ययन करनार अभ्यासी माटे आ रीते एक सुन्दर संकलन सम्पादकोए संपडाव्युं छे. ____ माहितीप्रद प्रस्तावना, कथासार, विविध परिशिष्टो आ बधांमां सम्पादकोनो अभ्यास तथा परिश्रम देखाई आवे छे. त्रण कथानकोना अलग अलग कथासार, जोके, अनावश्यक लागे. एकनो सार आपी, अन्य बेमां आवता नोंधपात्र फेरफारो के मुद्दा टिप्पणीमां नोंधी लेवामां होत तो पृष्ठो वेडफात नहि. उत्तम सम्पादन, प्रकाशन. ४. सम्मत्तम् ले. डॉ. भानुबेन सत्रा; प्र. अजरामर जैन सेवा संघ, मुम्बई. सं. २०६६, ई. २०१० १७मा शतकना प्रसिद्ध जैन श्रावक कवि ऋषभदासनी एक रासकृति 'समकितसार रास'ने आधारे जैनोने अभिमत एवा 'सम्यक्त्व' विषे लखायेलो शोधनिबन्ध; एना आलेखनथी लेखिकाने डॉक्टरेटनी पदवी प्राप्त थई छे. ___ ऋषभदास कवि विषे, प्रस्तुत रास विषे विस्तृत अने विशद अध्ययन थयेलं आ ग्रन्थमां जोवा मळे छे. रासमां आवता विविध धर्म-शास्त्रीय विषयो विषे परम्परागत जाणकारी आपवामां आवी छे. तेने लगतां केटलांक चित्रो पण आपेल छे. 'सम्यक्त्व' पदार्थने केन्द्रमा राखीने जैन तेमज अन्य दर्शनोनो तुलनात्मक अभ्यास दर्शावतुं एक प्रकरण पण छे. मूळ रासनी वाचना, तेनी आधारभूत हस्तप्रतनी फोटोकोपी, तथा उपयोगी परिशिष्टो धरावता शोधप्रबन्धने जोईने डॉ. भानुबेनना स्वाध्याय-श्रमनी अनुमोदना करवानुं मन थाय तेम छे. श्राविका बहेनो तथा साध्वी-सतीओमां आ प्रकारनी स्वाध्यायरुचि वधती जोवा मळे छे,
SR No.520558
Book TitleAnusandhan 2011 12 SrNo 57
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages135
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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