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डिसेम्बर २०११
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मनमा राखीने वर्णन करी रह्या छे. खरेखर तो हजी अर्हत् पार्श्व माताना उदरमां छे; जन्म पाम्या नथी, अने 'स्तनपान करे छे' एवं पण कविए कर्वा नथी. मात्र माता, स्तनमण्डल दूधछलकतुं होय, अने तेनुं पान अर्हत् करी शकेतेवी लोकव्यवहारमान्य सम्भावना ज आ पद्यथी प्रगट थाय छे. तो अहीं भयानक टि. सं. द्वारा आपणने मळे छे :- "इदमनागमिकम्, सर्वेषामप्यर्हतां स्तनपानस्याऽभावात् । वस्तुतः तीर्थकराशातनाकरत्वेनेदं श्लोकमेव निगृहितव्यं विद्वद्भिः ।"
कविनी चमत्कृतिसभर कल्पनानो आस्वाद माणवाने बदले सं. कहे छे के 'आ वात अनागमिक छे; आ श्लोकथी 'जिन'नी आशातना थती होई तेने रद्द करी देवो घटे.
___जो के श्लोक शब्द पुंलिङ्गी छे, तेथी अहीं सं.ना वाक्यमां नपुंसक बनावी देनार सम्पादकजीनी सज्जता परत्वे शुं कहेवू ते समजाय तेम नथी.
अस्तु. आटलुं विगते लखवा पाछळ सं.ने के अन्यने ऊतारी पाडवानो आशय नथी होतो. परन्तु अवास्तविक सम्मार्जन-संशोधन रोकवानो ज आशय छे. ज्यां सुधी परिकर्मित मति न बने त्यां सुधी आवां सम्पादनो पोताना जाणकार वडीलादिने देखाड्या विना ने तेमनी सम्मति विना प्रगट न करवां जोईए.
३. ऋषिदत्ताचरित्रसंग्रहः कर्ता : भिन्नभिन्नकर्तारः; सं. साध्वी चन्दनबालाश्री, पं. अमृत पटेल; प्र. भद्रङ्कर प्रकाशन अमदावाद; सं. २०६७, ई. २०११
__ ऋषिदत्ता ए जैन संघ- एक अमर पात्र छे. ते महासती स्त्री हतां. तेमनुं जीवन-कथानक घणुं रोचक, करुण तथा प्रेरक छे, तेथी तेमनें कथानक अनेक ग्रन्थकारोए पोताना ग्रन्थोमां के स्वतन्त्र रूपे आलखेलुं छे. ते पैकी छ विशिष्ट चरित्रोनो सङ्ग्रह आ ग्रन्थमां थयो छे.
आमां प्रथम त्रण चरित्रो तो प्रथमवार ज सम्पादित थईने पुस्तकरूपे प्रकाशित थाय छे. सम्पादकोए प्राचीन ताडपत्र-हस्तप्रतोनो आधार लईने लिप्यन्तर करवापूर्वक आ त्रण कृतिओनुं सरस सम्पादन आप्युं छे.
प्रथम चरित्र प्राकृतभाषाबद्ध अने पद्यात्मक छे. तेनी रचना ९मा-१०मा