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________________ १७६ अनुसन्धान-५६ नवां प्रकाशनो १. शब्दप्रभेदः, कर्ता : महेश्वरकवि, टीकाकार : उपाध्याय ज्ञानविमलगणि; सं. आ. श्रीचन्द्रसूरि, श्री विनयसागर; प्रका. रान्देर रोड जैन संघ, सूरत; ई. २०१०, सं. २०६७ अजैन विद्वानोनी रचनाओ पर टीका के विवरण लखवां अने ते रीते ग्रन्थोनी उपयोगिता तथा उपादेयता वधारवी, ए जैन विद्वान् मुनिओनो मनगमतो विषय रह्यो छे. कालिदास, भारवि, माघ जेवा महाकविओनां रचेल काव्यो, नाटको, मम्मट अने भोजना रचेला साहित्यशास्त्रो - आ बधांनुं अध्ययन सेंकडो वर्षोथी जैन मुनिओ करतां आव्या छे, अने प्रसंगे प्रसंगे ते ग्रन्थो पर टीकानी रचना पण करतां आव्या छे. १२मा शतकमां थयेला, प्रकाण्ड विद्वान् कवि महेश्वरे 'शब्दप्रभेद' नामे शब्दकोषग्रन्थ-पद्यबद्ध रच्यो छे. कवि पोतानी कृतिने 'शब्दभेदप्रकाश' तरीके ओळखावे छे. काव्यरचना करनार कविओने, समानता धरावता शब्दोमां पण मात्राकृत, वर्णकृत के अर्थकृत भिन्नता होय तेनो परिचय मळी रहे तेवा हेतुसर आ कोषनी रचना थई छे. कोष ४ प्रकरणोमां वहेंचायो छे. अहीं प्रत्येक प्रकरणने 'निर्देश' एवं नाम आपवामां आव्युं छे. आ लघु कोष उपर उपाध्याय श्रीज्ञानविमलगणीए ३७०० श्लोक प्रमाण विस्तृत टीका रची छे, जे कोष अने तद्गत शब्दोनी व्युत्पत्ति समजवा माटे एकदम उपयुक्त साधन बनी रहे तेम छे. सम्पादकोए कोष, कोषकार तथा टीकाकारनो विस्तृत परिचय करावती विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना लखी छे, तेमज अनेक अनेक परिशिष्टो आपीने ग्रन्थनी उपादेयता खूब वधारी आपी छे. सम्पादननो एक मजानो आदर्श तेमणे पूरो पाड्यो छे. आजकाल आपणे त्यां सम्पादनो तथा प्रकाशनोनुं प्रमाण बहु वध्यु छे, परन्तु तेमां जे प्रकारचें काम थर्बु जोईए ते थतुं-देखातुं नथी. एवे वखते प्रस्तुत कोष-प्रकाशन एक सरस आदर्श प्रस्थापी आपे छे. प्रस्तावना, परिशिष्टो, पादटीपो - आ बधुं तो प्राचीन ग्रन्थोने समजवानी चावी छे. ते न होय तेवां प्रकाशनो खास उपादेय नथी थतां.
SR No.520557
Book TitleAnusandhan 2011 09 SrNo 56
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size115 KB
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