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________________ १३२ अनुसन्धान-५६ आ पांच तीर्थोनी आमां भावभरी स्तवना छे. कवि लावण्यसमयने आ तीर्थो प्रत्ये विशेष आकर्षण हशे एवं जणाई आवे छे. - शीतलनाथ - स्तवन अमरसरना मन्दिरना मूलनायक श्रीशीतलनाथ भगवानने उद्देशीने रचायुं छे. प्रभुने पाम्यानो आनन्द कविए विविध कल्पनो द्वारा मनोरम रीते चित्रित कर्यो छे. - आ रचनाओनुं लिप्यन्तर पं. श्रीअंकितभाई (पालीताणा) ए करी आप्युं छे. हस्तलिखित पत्रो अमारा संग्रहना छे. श्रीगोडीजी पार्श्वजिन - स्तवन ॥६०॥ अव० १ प्रभु सहजइ, महिर करउ सदा जी, सेवकनी, सुणि अरदास हो, परगरज, जंगम जेह छइ जी, नवि मेहलइ, तेह निरास हो. अवधारो२ अरज मया करी जी, पाउ धारऊ, मुज मन गेह हो, स्यो चारो२ साहिबनें सेवक तणउ जी, जो देस्यो छटकी छेह हो. अव० २ एक निजरिं२ जेह सहुने जूइ जी, किम बदलें२ दिल ते दयाल हो, दीन देखी २ जे न करी दया जी, किम तेहने कहीइ कृपाल हो. अव० ३ भलो भुंडो, हुं सेवक तुम तणो जी, गुण हीणों२ गुनही अत्यंत हो, पणि तुम्हनें, न घटि उवेखवो जी, तुम्हे गिरुआ ने गुणवंत हो. अव० ४ साहिब जो२ सेवकनें तजो जी, तो सेवकनुं, तो स्युं जाइ हो, कोइ बीजानें२ जई ओलगें जी, पणि प्रभुनी, लाज लेपाय हो. प्रभु मोटा२ मीटि पालटि जी, तिहार छोटा २ नु लहि तोल हो, समभावी, स्वभावि जेह छइ जी, किम थाइ तेहनुं मोल हो. सेवक जे, कहिवाणउ आपणउ जी, निरवही, लेवो प्रभु तास हो, पहिलां ने३ पछि पणि तुम्ह विना जी, कुंण देस्यें दिलासो पास हो. अव० ७ चीतारो२ न सकि चीतरी जी, रूप ताहरो २ जगवितरेक हो, अव० ६ जो न्यारो सेवकथी तुं रही जी, पणि हुं तो न मेलुं टेक हो. अव० ८ अव० ५
SR No.520557
Book TitleAnusandhan 2011 09 SrNo 56
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size115 KB
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