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________________ ओगस्ट २०११ तुझ सरिखऊ, जउ बीजउ हुइ जी, जोता स्युं, एह जगमांहि हो, तिहारिं तुझनें, कुण महिनत करइ जी, जइ वलगु, तेहनी बांहि हो. अव०९ ताहरी माइ, एक तुं हि ज जण्यो जी, बीजो कोइ नहि बलवान हो, इम जाणी२-नइ हुं आवियउ जी, मुज मुजरो, ल्यो महिरवान हो. अव० १० जउ मुझनई, तुम्हें उवेखस्यो जी, तउ पणि हुं, न छांडुं तुझ हो, तुम्हे साथे २ निवड नेहिं करी, अविलंब्यो २ आतम मुझ हो. अव० ११ ताहरि तऊ सेवक छै घणा जी, पणि ता (मा) हरि२ साहिब तुं एक हो, भवमांहि, भमतां भवोभवं जी, तुझ सेवा चाहुं सुविवेक हो. निसनेही, पणुं लही नीरनुं जी, मच्छ जलनि न छाडि तो हि हो, जल विना, तेहनें जीवाडवा जी, नही बीजो समरथ कोइ हो. जेह विना२ काज सरें नही जी, सी तेस्युं आखरि रीस हो, मेहानें वली मोटां घरां जी, आस तजीइ न वीस्वावीस हो. ते माटि हुं त्रिविधिं करी जी, पास गोडी गरीबनिवाज हो, सेवक छं उदय सदा लही जी, मनमोहन श्रीमहाराज हो. अव० १२ अव० १३ शब्दकोश परगरज (१) मया (२) चारो (३) गुनही (४) ओलगे (५) पालटि (६) मीटि (६) जगवितरेक (८) आखरि (१४) परोपकारी, परगजु दया, कृपा रस्तो उपाय, गुनेगार सेवे, सेवा करे बदलावे मीट ? नजर ? जगतमां तेना जेवुं बीजुं कोई नथी, जगतव्यतिरेक आकरी ? १३३ अव० १४ अव० १५
SR No.520557
Book TitleAnusandhan 2011 09 SrNo 56
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size115 KB
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