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________________ ऑगस्ट २०११ १३१ प्रकीर्ण स्तवनो - उपा. भुवनचन्द्र प्रकीर्ण पत्रोमांथी मळेलां केटलांक स्तवन अहीं रजू कर्यां छे. गोडीपार्श्वनाथना स्तवनमां कर्तानुं नाम नथी, बाकी बधांमां कर्तानाम छे, अने आ बधा कविओ सुप्रसिद्ध छे. एमनी आ रचनाओ कदाच क्यांक प्रगट थई हशे, तो पण आ पानाओमां तेमनुं मूळ भाषास्वरूप अने जूनो पाठ सचवाई रह्यां छे. ए दृष्टिए ए प्रकाशनयोग्य जणाय छे. आवी जनी कृतिओमां जोवा मळती जूनी देशीओ - जूना ढाळ ध्यान खेंचे छे. गमे ते देशीमां कविओनी कलम केवी सरलताथी वही जाय छे, हृदयोमिओनुं चित्रण आ कविओ केटली सहजताथी करे छे - ऐनुं दर्शन पण आनन्ददायक छे. रचनाओमां जूना शब्दरूपो जोवा मळे छे. जेम के, ‘पधारो'नुं मूळ रूप ‘पाउ धारउ', 'परगजु'- असली रूप 'परगरज' वगेरे अहीं यथातथ रह्या छे. परवर्ती नकलोमां आवें जोवा न मळे. गोडी-पार्श्वनाथ-स्तवन - स्वामी-सेवक भावने अवलंबीने रचायेल आ स्तवनमां प्रभुने विनन्ति, काकलूदी, उपालम्भ वगेरे बहु मधुर शब्दोमां व्यक्त थया छे. प्रभुस्नेह अने शरणागति आ स्तवनमां चूंटी चूंटीने गवाया छे. __ भीलडिया-पार्श्वनाथ-स्तवन - आमां पार्श्वनाथ प्रभुना जीवनप्रसंगोनुं वर्णनमात्र छे. काव्यतत्त्व नहिवत् छे. भीलडी गाम के तीर्थ विषे पण कोई उल्लेख नथी. कवि आ तीर्थनी यात्राए गया होय अने त्यारे तेमणे आ स्तवन रच्युं होय एवी कल्पना थई शके छे. सम्भवनाथ-स्तवन - आध्यात्मिक दृष्टिए रचायेल आ स्तवनमां विविध जीवभेदोमां जीवोनी भवस्थिति-कायस्थितिनुं शास्त्रीय निरूपण खूबीपूर्वक - काव्यतत्त्वने आंच न आवे एवी रीते - सांकळी लीधुं छे. उपा. देवचन्द्रजी महाराजनां स्तवनोनी याद अपावे एवी रचना छे. पञ्चतीर्थी-स्तवन - शत्रुजय, दीओदर, गिरनार, जीराउला, सांचोर
SR No.520557
Book TitleAnusandhan 2011 09 SrNo 56
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size115 KB
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