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ओगस्ट २०११
विवेचन, नल-दमयन्ती-प्रबन्ध और मूलदेव - चौपाई की लिखित प्रतियाँ प्राप्त
हैं
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इसकी एकमात्र ७ पत्रों की प्रति श्रीखरतरगच्छ ज्ञानभण्डार, शिवजीराम भवन, जयपुर में २०६ / ५५९ में सुरक्षित है । मैंने इसी प्रति के आधार से सन् १९४५ में प्रतिलिपि की थी । इस भण्डार के अधिकारियों से कई बार अनुरोध करने पर भी यह प्रति पाठमिलान के लिए प्राप्त नहीं हो सकी । शब्दानुशासन सम्बन्धी यह लघुकाय ग्रन्थ व्याकरण अध्येताओं के लिए अत्यन्त उपयोगी होगा । १
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ठे. प्राकृतभारती, जयपुर
१. नोंध : आ कृति-लेख घणो अशुद्ध हतो. तेमां पूर्ति अने सुधारा तथा टिप्पणो पण आवश्यक हतां. ओ बधुं कार्य, मूल प्रतना अभावमां घणुं कठिन अने श्रमसाध्य हतुं. वळी, पाणिनीय व्याकरण पर आधारित रचना होवाथी पण घणी महेनत करवी पडे तेम हतुं. ए बधुं श्रमभर्यु काम मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजयजीए यथामति-शक्ति क आप्युं छे, अने ए रीते कृति सम्पादन - कार्यमां तेमणे सिंहफाळो आपेल छे, एटलुं वाचको सम्पादकनी जाण सारु. शी.