________________ 152 अनुसन्धान-५५ साहित्यजगतमां भलभला लेखक/कवि/संशोधकना पुस्तकनी तीखी समीक्षाओ थती होय छे. मुनि भगवन्तो प्रायः संशोधन/सम्पादननी मान्य परिपाटीथी अपरिचित होय छे. मात्र पाण्डित्यथी संशोधन/सम्पादननी योग्यता प्राप्त थती नथी. प्रशिष्ट ग्रन्थोनुं बहोळु पठन-पाठन, विविध भाषाओना स्वरूपनो परिचय, विभिन्न विद्याशाखाओनी (भले पूरी नहि, कामपूरती) जाणकारी अने सौथी वधु तो, महान संशोधकोए करेला कामोनुं जिज्ञासु-विद्यार्थी भावे परिशीलनआ बधुं लेखक के सम्पादक पासे होवू जोईए. 'अनुसन्धाने' 'परस्परं प्रशंसन्ति'नी ढबे समीक्षा करवानी नीति स्वीकारी नथी एवं एमां प्रगट थती समीक्षा जोतां कही शकाय छे. आ माटे सम्पादकश्रीने अभिनन्दन! आ अभिगम जैन साहित्य अने संशोधनने लाभकर्ता थशे. प्रकाशको/ सम्पादको/लेखको पण आ वात समजे एवी विनन्ति करवानुं मन थाय. जैन देरासर, नानी खाखर-३७०४३५ गुजरात