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मई २०११
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'अनुसन्धान'मां आ प्रकारनी रचनाओ अगाउ पण प्रगट थई छे, ए बधांनुं एक संकलन प्रसिद्ध करी शकाय. आ ज अंकमां प्रकट थयेल श्रीपार्श्वनाथस्तोत्र पण आवी ज मनोरम रचना छे. पाठमां थोडी अशुद्धि रही छे. ह.प्र.नुं वधु चोकसाईथी वाचन तथा अर्थनी विचारणा थाय तो पाठ वधु चोख्खो तैयार थई शके. श्लोक ४नो उत्तरार्ध आम कल्पी शकाय छे -
देव ! त्वदाननसुधांशरसौ निशान्त
आलोकि सेवकजनैः सुकृतीनकान्त ! श्लोक ५मां '०कलुषे' नहि '०कलुषं' योग्य लागे छे - श्लोक ६नो उत्तरार्ध - दृष्टिः सतां जिनप ! ते वदनारविन्दे
नो लीयते कथममन्दवचोमरन्दे श्लोक ९ : 'विभादे'ने स्थाने विभाते, 'शुभाले'ने स्थाने 'शुभा ते' होवानो संभव छे.
'श्रावकद्वादशव्रतचतुष्पदिका' अपभ्रंशभाषानी प्राचीन रचना छे. पाठ संशोधन मागे छे.
___ 'नेमिजिनस्तुति' एक विद्वान श्रावकनी रचना छे जेना पर एक मुनिवरे टीका रची छे. जो के केटलांक स्थळोए अर्थ स्पष्ट करवामां टीकाकारने पण सफलता नथी मळी, पण टीका विना कृति यथेष्ट रीते समजी शकात नहि ए पण स्पष्ट छे.
विशेषांकना बंने भागनां आवरणो पर हेमचन्द्राचार्य सम्बन्धित छायाचित्रो मूकायां छे. आवरण पर दस्तावेजी प्रकारनां चित्रो आपवानी शैली, आवकार्य ज छे. ए ज रीते 'अनुसन्धान' जेवा पत्रमा ग्रन्थसमीक्षा जेवो विभाग होवो अनिवार्य छे. मात्र प्रशंसा के आवकार ए समीक्षा नथी. प्राचीनकृतिनुं सम्पादन होय तो तेना सम्पादन/ संशोधननी बाबतमां अने कोई मौलिक सर्जन होय तो तेना विषयवस्तु, भाषा, शैली वगेरेनी बाबतमां समीक्षके अवलोकन/मूल्यांकन करवानां होय तथा ग्रन्थनी विशेषता/न्यूनता तरफ ध्यान खेंचवार्नु होय.