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________________ १४८ अनुसन्धान-५५ सामान्य फरक देखाय छे तेनुं कारण वाडा/पोळ/शेरी वगेरेना नाम/हद वगेरेमां समये समये थता फेरफारो तथा लेखक/कविनी गणतरीमा रहेता फेरफार होई शके. सिद्धहेम व्याकरण अन्तर्गत प्राचीन गुजराती दूहानी एक नवी वृत्ति(अपूर्ण) आ अंकमां छे. प्रतनी अशुद्धि दूर करवानो सम्पादिका साध्वीजीए पूरो प्रयास को छे, तेम छतां क्यांक अशुद्धि रही जवा पामी छे. दो. ५मां 'झाएवि' छे ते वधारानो जणाय छे. 'ण(णा)वइ' छे त्यां ‘णाई' शब्द संगत थाय छे तेथी णोवइ (णाइ) एम सुधारवू घटे. दो० १५मां 'पइट्ठ णवि' छपायु छे ते वृत्ति अनुसार 'पइट्ठणवि' ठीक लागे छे. दो. ३१नी वृत्तिमां '०मण्डलं चन्द्रिकया' एम कर्यु छे पण अहीं ०मण्डलचन्द्रिकया' एम समास करवो योग्य लागे छे. दो. ३३नी वृत्तिमा 'तुच्छमध्याः'ने स्थाने 'तुच्छमध्यायाः' वांचवू रह्यं. दो. ४६नी वृत्तिमां 'स्थातमपि' छे ते प्रेसभूल ज हशे, 'स्थानमपि' जोईए. भाग-२मां भायाणी साहेब सम्पादित एक अप्रगट रचना – 'कुमारसम्भव बालावबोध' - जैन श्रमणोनी साहित्यप्रीतिनुं उज्ज्वल उदाहरण समान छे. जैन मुनिओ संस्कृत व्याकरणनो अभ्यास कर्या पछी पंचकाव्यनो अभ्यास करता, जेमां कुमारसम्भवनो पण समावेश थतो हतो. एवा प्राथमिक अभ्यासीने काव्यनो अर्थबोध सुगमताथी थाय ए माटे कोई विद्वान जैन मुनिए संक्षिप्त टीका अने ते समयनी गुजराती भाषामां अर्थ लखवानो श्रम लीधो छे. दुर्भाग्ये कां तो ए काम ज पूरुं थयुं नथी, के पछी नकल करनारे पोथी पूरी लखी नथी; कां तो भायाणी साहेब पोते ए पोथीमांथी पूरो उतारो करी शक्या नथी. ए जे होय ते, पण भायाणी साहेबने आ कृति ध्यानार्ह तो जणाइ ज छे. बाला०नी भाषा ओछामा ओर्छ पंदरमा शतक जेटली जूनी जणाय छे. आनी हस्तप्रत पण जर्जरित हशे तेथी पाठनिर्धारणमां पण बाधा आवी हशे. केटलांक स्थान आ रीते व्यवस्थित थई शके खरां - __पृ. २, पं. २ (नीचेथी) : 'न तु जलनिय्ये (?)' छे त्यां 'ननु जलनिधयो' बराबर बेसे छे. पृ. ३ प. ९ : 'हस्तप्रमाणय (?) छे त्यां 'हस्तप्रमाणया' एवो पाठ संभवे. “किरि' शब्द 'जाणे के' एवा अर्थनो अपभ्रंश शब्द छे. आ शब्दनो उपयोग ए वातनो सूचक छे के आ बाला. अपभ्रंशकालनी
SR No.520556
Book TitleAnusandhan 2011 06 SrNo 55
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
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