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मई २०११
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नजीकनी रचना छे.
___'नानादेशदेशीभाषामय स्तोत्र'मां मारवाडी स्त्रीना मुखे बोलायेला भागमां 'र'कारना स्थाने 'ग'कारनो प्रयोग थयो छे ते विषे तेनी भूमिकामां अमे नोंध करी छे. ए प्रदेशमा एक जमानामां आवो उच्चार थतो हतो तेवू जणावतो दस्तावेजी आधार त्यार पछी अमने मळी आव्यो छे, अने ते बीजे क्यांयथी नहि, आगमप्रभाकर पूज्यपाद श्रीपुण्यविजयजी म.ना लखाणमांथी मळ्यो छे. पोणो सो वर्ष पहेला तेओश्री ए बाजू विचर्या हता त्यारे तेमणे आ वातनी नोंध करी हती. पोताना गुरुजी उपरना पत्रमा तेओ लखे छे :
"अहींना लोको सामान्य रीते 'स'ने 'च' बोले छे अने 'च'ने 'स' - तरीके उच्चारे छे. तथा 'र' मूर्धन्य होवा छतां कंठ्य अक्षरनी जेम बोले छे एटले ए उच्चारमां 'ग' अक्षरनो भास थाय छे....."
- "२०मी सदीनी अलौकिक व्यक्ति" पृ. १३ आ ज रचनानी ५६मी कडीमां 'आबूगोडा' शब्द आव्यो छे तेनो खुलासो पण अमने अमारा ताजेतरना विहारमा मळी गयो. आबूनी पश्चिम तळेटीना १०-१५ गामो माटे आजे पण 'आबूगोड' शब्द प्रचारमा छे. गुजरातमां प्रचलित 'गोळ' शब्द साथे आनी निकटता जोई शकाय छे.
'केटलीक ऐतिहासिक अप्रगट कृतिओ' रसप्रद छे. सम्पादकोए पूरक माहिती पण आपी छे. पाठ प्रायः शुद्ध छे. विद्वान मुनिओ साहित्यक्षेत्रे केवा ओतप्रोत रहेता तेनी झलक आवी नानी नानी कृतिओ आपी जाय छे.
श्रीदेवचन्द्रजी म.नी एक अप्रसिद्ध रचना अनु० द्वारा प्रकाशमां आवी छे. रत्नाकर पचीसी आधारित आ रचना देवचन्द्रजी म.नी कदाच प्राथमिक रचना होय, जेथी तेनो प्रसार ओछो थयो होय. आ कृतिनी हस्तप्रत अने लेखनकाळना विषयमा सम्पादकोए कोई नोंध करी नथी. देवचन्द्रजी महाराजनी शैलीनी छाप कृतिमां देखाई आवे छे. २८ कडी सुधी संस्कृत कृतिना भावो गूंथाया होवानुं सम्पादको नोंधे छे, तेमां एटलु उमेरी शकाय के अन्तिम श्लोकनो भाव कविए क. ३२-३३मां लीधो छे.
___'वैराग्यरंगः'० आ श्लोकनो भाव कविए १०-११ एम बे कडीमां लीधो छे. अहीं कविए वैराग्य, उपदेश अने विद्यानो साचो उद्देश | होवो