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________________ डिसेम्बर २०१० तोडीफोडी नाखे छे, केशगुम्फन छोडी नाखे छे, भोजन अने कुसुमशय्या त्यजे छे. सखीओ आ बधुं पुनः धारण करवा, स्वीकारवा वीनवे छे ने सामे राजुल 'अंह अंह' नो नकार- प्रत्युत्तर वाळे छे. ७३ 'नवउ ति नवसर हार, सा गलि धरूं कि ?' 'अंह अंह' 'कुसुमसेज सुकुमाल सोइ पत्थरुं कि ?' 'अंह अंह' (२/९८ ) सखीनी वात नकारवानो राजुलनो लहेको - लढण अहीं केवुं लयात्मक रूप पामे छे ! राजुल प्रियतम नेमिने उपालम्भ आपतां कहे छे 'रिधिरमणि - सुख मेल्ही देव ! डूंगरि सिउं दीठउं ?' (२/१०६) 'अट्ठ भवंतरि नेहलु नेमि ! न छेहु दाखियउ, भव नवमइ त नाहला ! ए ऊपजतु कां राखिउ ? ' (२ / १०८ ) छेवटे परिवर्तन पछीनो राजुलनो उद्गार ' हत्थिई हत्थ न मेलिङ, प्रिय ! सोइ हत्थ मत्थइ करु.' (२ / १११ ) राजुल सपरिवार गिरनार गई अने समवसरणमां देशना आपता नेमिने जोई आनन्दविभोर बनी, प्रणाम करी नेमिनाथनी उपदेशवाणी सांभळवा लागी. आ उपदेशवचनोमां जीवहिंसा करनार जीवो पापकर्मों द्वारा केवी घोर नरकयातना अने परमाधामीओनी भयङ्कर शिक्षा पामे छे एनुं तेमज जिनाज्ञापालन करनार एनां केवां सुफळ प्राप्त करे छे एनुं वर्णन थयुं छे. राजुले प्रतिबोधित थई संयम स्वीकार्यो. नेमिनाथ साधु-साध्वी श्रावकादिना मोटा समुदायने प्रतिबोध पमाडी परमपदने पाम्या. काव्यान्ते कवि गुरुपरम्परा, कृतिरचनासमय अने स्वकर्तानाम दर्शावी काव्यनी समाप्ति करे छे. संपादन : केटलीक पाठ / अर्थशुद्धि * : काव्यसौन्दर्य ओपती आ कृतिनुं सम्पादन संशोधन-सम्पादनक्षेत्रे लब्धप्रतिष्ठ विद्वान डॉ. शिवलाल जेसलपुराए ई. १९६५मां कर्तुं हतुं. ला.द.भा.सं. विद्यामन्दिर द्वारा ए प्रकाशित थयुं छे. सम्पादके आ सम्पादन माटे श्रीहेमचन्द्राचार्य
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
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