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अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ जैन ज्ञानमन्दिर - पाटणमांथी प्राप्त थयेली त्रण हस्तप्रतोने उपयोगमां लीधी छे. आ त्रणेय प्रतो पुष्पिका अने लेखनसंवत विनानी छे. जोके सम्पादक भाषास्वरूपने आधारे A अने C प्रत सं. १६०० पहेलां अने B प्रत ए पछी लखायेली होवानुं अनुमाने छे. सं. १६००ना लेखनवर्ष अने पुष्पिकावाळी एक वधु प्रत सम्पादकने ला.द.भा.सं.विद्यामन्दिरमांथी ज उपलब्ध थई हती, परन्तु ओना अक्षरो अवाच्य अने पाठो भ्रष्ट होईने उपयोगमा लेवाई नहोती.
सम्पादके 'उपोद्घात'मां कवि लावण्यसमयना जीवन-कवननो परिचय आप्यो छे, जेमां कर्ताए रचेली नानीमोटी सर्व कृतिओनी संक्षिप्त नोंधो समाविष्ट छे. 'नेमिरङ्गरत्नाकर छन्द'नी विस्तृत समालोचना करतो अभ्यासलेख रजू करायो छे. उपरान्त आ कृतिनी जूनी गुजराती भाषाना स्वरूप अने व्याकरणनी पण आवश्यक नोंध सम्पादके लीधी छे.कडीवार पाठान्तरो अने कृतिने छेडे सार्थ शब्दकोश आपवामां आव्यां छे. आम अत्यन्त श्रमपूर्वक तैयार थयेखें आ सम्पादन छे.
हस्तप्रत उपरथी कृतिनी तैयार थयेली वाचनामां क्यांक पाठनिर्धारणनी तेमज केटलाक शब्दोना अर्थनिर्णयनी अशुद्धि जोवा मळी छे तेनी अहीं नोंध लई यथाशक्य पाठ/अर्थशुद्धि करवानो प्रयास कर्यो छे, जे पाछळनुं प्रयोजन केवळ कृतिनी वधु नजीक रही शकवानुं छे.
कृष्णनी राणीओ कृष्णना पितराई भाई नेमिकुमारने लग्न करवा फोसलावे-पटावे छे एनुं वर्णन करती पंक्ति आ प्रमाणे छे'गुल गलीउ नइ साकर भेली, इणि परि अतिघण उठां मेली'
(१/५१) [= गोळ गळ्यो ने एमां वळी साकर भेळवी होय, ए प्रकारे घणां दृष्टान्तो/कहेवतो मेळवीने....]
__ हस्तप्रतमांथी आ पंक्तिमांनो 'उठां' (दृष्टान्तो) शब्द सम्पादक पकडी शक्या नथी. एटले 'उठां' शब्दमांनो 'उ' वर्ण डाबी बाजुनी शब्द साथे, अने 'ठां' अक्षर जमणी बाजुना शब्द साथे जोडीने पाठ आ प्रमाणे को छे : '.... इणि परि अतिघणउ ठांमेली.' खोटा पाठनिर्धारणने लईने 'ठांमेली' जेवो