SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२ अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ 'खिणि फरकिउं दक्षिण अंग ताम' - जमणुं अङ्ग फरकवाना उल्लेख द्वारा कविए कशाक विपरीतनी आगाही आपी छे. एमां पण तत्कालीन मान्यताओनुं प्रतिबिम्ब जोई शकाशे. लग्नोत्सुक नेमिना जीवनमां महत्त्वना वळांकबिन्दु समी घटना बनी छे भोजन माटे थता पशुपंखीवधनी. वध समयनी पशुपंखीनी मरणचीसो नेमिना हृदयने पीगळावी नाखे छे. पशुपंखीओना तरफडाट चित्र हृदयद्रावक बन्यु 'न-न चालइ चाला, पडिआ गाला, ससा सुंहाला धूजि मरइ' (२/७३) 'न-न फावइ फाला, हरिणा काला, नयणि घणाला नीर झरइ' (२/७४) नेमिनाथ लीला तोरणेथी पाछा फरी गया. संयम लइ गिरनार गया. ८१ थी ११० कडीओमां राजुलनी विरहव्यथा, सखीओ साथेनो संवाद, नेमिने उपालम्भ व.नुं कलात्मक आलेखन थयुं छे. विरहव्यथाना वर्णनमां कविए करेला यमकप्रयोगो नोंधपात्र छ : 'खिणि भीतरि खिणि वली आंगणइए, प्रिय विण सूनी __वलीआं गणइए.' (२/८५) 'करुण सरई थानकि कोरडए, जण जाणए नारद को रडइए.' (२/८६) 'क्षणि ऊठी जाइ ऊतारइं, हार-दोर-कंकण ऊतारइ' (२/८७) साथे आ उपमाचित्र पण केवं नोखं ज ऊपसी आव्युं छे : 'अलगी नांखइ सोवनत्रोटी, जिम जवरोटी कागइ बोटी.' (२/९४) (-जेम कागडाए बोटेली जवनी रोटली फेंकी देवामां आवे तेम राजुल सुवर्ण-आभूषण अळगुं नाखी दे छे.) विरहव्यथित राजुल आम बधो शणघार उतारी नाखे छे, आभूषणो
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy