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________________ न होवो जोईए. पोते बांधी दीधेली पूर्व-धारणाओ तेने एकतरफी-एकांगी बनावी मूके छे. आथी तेना चित्तमा एक प्रकारनो आग्रह बंधाई जाय छे, जे तेने सत्य धारणाथी वेगळो लई जाय छे. पछी ते योग्य-अयोग्य बधी युक्तिओने, वितण्डापूर्वक, पोते बांधेली धारणाने प्रमाणित-पुष्ट करवा माटे वापरवा मांडे छे. आमां सत्य जोखमातां सौथी मोटी हानि संशोधनने ज पहोंचे छे. साचो संशोधक तो सत्याग्रही ज होय. सत्यनो आग्रह एनी दृष्टिमां बेठो होय. सत्यनो आग्रही खरो, परन्तु कदाग्रह के मत-ममत धरावनारो नहि. वस्तुतः तो संशोधक 'सत्याग्रही' होय ते करतां 'सत्याग्राही' होय ते वधु इच्छनीय लागे छे. सत्यना आग्रह करतां सत्यनुं ग्रहण-स्वीकार ए वधु सारी भूमिका छे. सहिष्णुता अने उदारता : संशोधक कोई वाते तथ्य-प्रतिपादन करे, अने ते कोईने मंजूर न होय; पसंद न पडे; ते विरोध करे; अयोग्य के विवेकहीन वर्तन पण करे; तो संशोधक नबळो पड्या विना ज ते बधुं चूपचाप सहन करे. केमके तेना मनमां, सामी व्यक्तिनी जेम, आ के तेने माटे द्वेष के दोष तो नथी; तेने तो प्रमाणभूत जणायेल तथ्यनुं प्रमाणिक प्रतिपादन ज करवानुं होय छे, अने तेम करवामां तेना कामनी इतिश्री थई गई होय छे. पछी कोई द्वेष-दुर्भावादिथी प्रेराईने आक्षेपात्मक भाषामां यद्वा-तद्वा लखे वा कहे, तो तेनो इलाज एक ज होय : सहन करी लेवू ते. हा, सामानी वातमां ते तथ्य- खण्डन करती के तेने खोटुं ठरावती कोई दलील के मुद्दो होय तो तेनु, पूर्ववत् विवेकपूर्ण रीते निरसन जरूर करवू जोईए. पण संशोधक असहिष्णु तो न ज बने. असहिष्णुता तो झनून, ममत, कट्टरता, कदाग्रह, संकुचितता जेवी विविध दुर्बलताओनी जनेता छे. आ बधी नबळाईओथी साचो शोधक १२ गाऊ वेगळो होय. उदारता बे प्रकारनी होय छे. एक तो अन्यना अथवा सामाना प्रतिपादनमां जणातां तथ्योने सद्भावपूर्वक स्वीकारवानी तत्परता. अने बीजी, पोताना प्रतिपादनमां थयेली भूल के क्षतिने कोई शोधी बतावे, तो तेने पण स्वीकारवानी तथा सुधारवानी तैयारी. त्यां क्षुल्लक अहंकार नडवो न जोईए. बीजाने तुच्छ के पोतानाथी हलका-हीन गणवानी वृत्ति न जागवी जोईए. एक सारा गणाता संशोधकमां, आटलां वानां तो, ओछामां ओछु, होवां जोईए.
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
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