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________________ डिसेम्बर २०१० पाठनी संगति कोइक रीते करवी शक्य होय त्यारे तो एमांथी बचवुं मुश्केल बनी रहे छे. आनुं एक उत्तम उदाहरण श्लोक - १०नी टीकामां जोवा मळ्युं. आमां टीकाकारे सम्यक्त्वनी व्याख्या करतां प्रशमादि सम्यक्त्वनां लिङ्गोनां वर्णननुं तत्त्वार्थभाष्यगत वाक्य उद्धृत कर्तुं छे. अने पछी स्पष्टता करी छे के प्रशम-संवेग-निर्वेद-ए रीते सम्यक्त्वनां लिङ्गोनुं कथन प्राधान्यनी अपेक्षाए ज छे. लिङ्गोनी प्राप्ति तो आस्तिक्य-अनुकम्पा -निर्वेद-एम पश्चानुपूर्वीए थाय छे. आ माटे वाक्य छे – “यथाप्राधान्यमयमुपन्यासो लाभश्च पश्चानुपूर्व्या". आमां 'ला'ने बदले 'चा' पण वांची शकाय तेम होवाथी अने प्राचीन 'भ' अने आजना 'रु' वच्चे कोइ ज तफावत नहीं होवाथी वांचवामां आव्युं “चारुश्च पश्चा०' पछी आगळ च होय तो विसर्गनो ओ थवो सम्भावित नहीं होवाथी पाठ सुधारवामां आव्यो- '० न्यासः चारुश्च पश्चा० आ पाठने अनुसारे लखायेला विवेचनोमां आ क्रमनी चारुता अने प्राधान्यापेक्षी क्रमनी अचारुता पण प्रतिपादित करवामां आवी ! संशोधकोए " ० न्यास आचारश्च पश्चा०" एवो पाठ पण सूचव्यो !! वात क्यांनी क्यां पहोंचे छे ! " घणी वार आपणी आंख अल्पपरिचित शब्दने स्थाने समानता धरावतो अने वाक्यमां संगत थई शके तेवो अतिपरिचित शब्द वांची ले छे. अने जो एवं व्यापकपणे बने तो मूळ शब्दनुं स्थान ए हदे जोखमाय छे के काळक्रमे आवो शब्द अहीं होवो जोइए एवी सम्भावना पण कोइने नथी लागती. जेमके श्लोक-४७ नी ३-४ पंक्ति " चित्रा सतां प्रवृत्तिश्च साऽशेषा ज्ञायते कथम् ?'' आमां ‘साऽशेषा' ना स्पष्टीकरण माटे टीका छे - " तदन्यापोहतः ". हवे उपरोक्त पंक्तिओनुं विवेचन करवानुं थाय त्यारे 'तदन्यापोहत : ' शब्दने नजरअन्दाज करीने अर्थ करवामां आवे छे : 'मुनिओनी चैत्यवन्दनादि विविध प्रवृत्तिओ समग्रपणे कई रीते जाणी शकाय ?" आ अर्थमां बे असंगति छे : १. ‘अशेष' नो अर्थ ‘साकल्येन' थाय नहीं के 'तदन्यापोहत : ' २. तारा जेवी प्रारम्भिक कक्षानी दृष्टिमां समग्र सत्प्रवृत्तिना ज्ञाननुं प्रयोजन पण नथी. हवे ताडपत्रीय पाठ जुओ "सा ह्येषा ज्ञायते कथम् ?'' आमां ‘हि एव तदन्यापोहत:' पण संगत थई जाय छे. अने तारादृष्टिने उचित तात्त्विक अर्थघटन पण तारवी शकाय छे के - " मुनिओनी प्रवृत्तिओ चैत्यवन्दनादि = १५७ =
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
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