SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५६ अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ देवचन्द्र-लालभाई-फण्ड द्वारा प्रकाशित. आ बन्ने वाचना ओछेवत्ते अंशे संशोधनार्ह हती. गुरुभगवन्ते केटलुक संशोधन बन्ने वाचनानी मेळवणी द्वारा तो केटलुक स्वयंप्रज्ञाथी करेलु हतुं, परन्तु हजु पण केटलांक स्थळे अर्थसंगति नहोती थती. पाठनी प्रामाणिकता प्रत्ये सन्दिग्धता रहेती हती. आ संजोगोमां गुरुभगवन्तने प्राचीन प्रत जोडे मुद्रित वाचनाने मेळवी जोवा मन थयुं, अने सद्भाग्ये विदुषी साध्वी श्रीचन्दनबालाश्रीजीना सहयोगथी योगदृष्टिसमुच्चयसटीकनी वि.सं. ११४६मां लखायेली ताडपत्र प्रति(खण्डित) अने सम्भवतः १६मा सैकानी कागदप्रति प्राप्त थई. ___ आ प्रतो साथे मुद्रित वाचनाने मेळवी जोतां पूर्वे करेलु संशोधन तो प्रमाणित थयुं ज, पण डगले ने पगले नवा शुद्ध पाठ जडता गया. साथे ने साथे घणी जग्याए नवो पाठ उमेरवानो थयो. केटलाक सामान्य भाषाकीय फेरफारवाळा पाठोने ध्यानमां न लहीए तो पण ग्रन्थना भावोना स्पष्टीकरण माटे अनिवार्य गणाय तेवां शुद्धिस्थानो घणां हतां. मुद्रित अशुद्ध के खण्डित पाठने आधारे थयेलुं विवेचनगत अर्थघटन, ग्रन्थकारना कथयितव्यथी घणुं जुदुं पडतुं जणायुं. आ पछी तो अभ्यासीओ सुधी शुद्धवाचना पहोंचाडवा- मन थाय ए तद्दन स्वाभाविक हतुं. ए इच्छा ज प्रस्तुत प्रकाशननी जननी बनी. _ वि.सं. २०६६नुं वर्ष आगमप्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी म.नी दीक्षाशताब्दीनुं वर्ष हतुं. तेनी उजवणीना उपलक्ष्यमां ते महापुरुषनी रुचि अने कार्योने अनुरूप कशंक करवू, अने ते रीते वास्तविक उजवणी करवी एवो अध्यवसाय गुरुभगवन्तना चित्तमा जाग्यो. ते अध्यवसाय- ज स-रस परिणाम एटले प्रस्तुत सम्पादन. सम्पादन-पद्धति आ वाचनाना सम्पादनमां मुख्यत्वे त्रण वस्तुओ पर भार मूकवामां आव्यो छे. (१) पाठसंशोधन (२) व्यवस्थित मुद्रण (३) ग्रन्थनी उपादेयतामां वृद्धि. पाठसंशोधन - प्राचीन लिपिना केटलाक अक्षरोना तेनाथी तद्दन जुदा एवा अत्यारना अक्षरो साथेना सरखापणाने लीधे घणीवार भ्रमपूर्ण वांचन अने तेने परिणाम भ्रामक पाठो सर्जाता होय छे. अमां पण ज्यारे सर्जाता भ्रामक
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy