SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डिसेम्बर २०१० १५५ योगदृष्टिसमुच्चय - सटीकनुं ध्यानार्ह संशोधन-सम्पादन मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय महान योगाचार्य श्री हरिभद्रसूरि विरचित योगग्रन्थो, भारतवर्षीय प्राचीन योगसमृद्धिनो आपणने सांपडेलो अमूल्य वारसो छे; योगविषयक मौलिक विचारणा, नवली रजूआत, विविध योगपरम्पराओनो सरस समन्वय व. उमदां तत्त्वो तो आ ग्रन्थोमां छे ज, पण एथी वधीने आ ग्रन्थोनुं मुख्य जमा पासुं ए छे के आना प्रणेता स्वयं योगमार्गना नीवडेल साधक छे. एओनी वाणी अनुभवजन्य छे. अने माटे ज आ वाणी हृदयस्पर्शी, आपणने हठात् योग माटे प्रेरे तेवी अनुभवाय छे. योगदृष्टिसमुच्चय ए हरिभद्रसूरिजीनी कालजयी रचना छे. कदमां नानकडी होवा छतां तेमां रहेला उच्चकोटिना भावो अने अन्यत्र अलभ्य एवा आठ योगदृष्टिनी प्ररूपणा द्वारा करायेला आत्मकल्याणमार्गना विवेचनने लीधे ए योगमार्गना पथिकोने हमेशां आकर्षती रही छे. __ आ ग्रन्थनी स्वोपज्ञ टीका साथेनी ताडपत्र पोथीना आधारे थयेली संशोधित-सम्पादित वाचना हमणां प्रकाशित थई. आम तो आ पूर्वे आ ग्रन्थ अनेकवार प्रकाशित थई चूक्यो छे. एना पर अनेक विवेचनो पण लखायां छे. छतां पण आ ग्रन्थनुं फरी एकवार प्रकाशन थयुं ते बाबत आश्चर्य उपजावे ते स्वाभाविक छे. अने तेथी ज आ लेखमां आ प्रकाशननी जरूरियात, आ वाचनामां अपनावायेली सम्पादनपद्धति, आ प्रकाशननी ध्यानार्हता व. जणाववा प्रयत्न करेल छे. आ प्रकाशननी जरूरियात __वि.सं. २०६५ ना चातुर्मास दरमियान पूज्य गुरुभगवन्त आ. श्रीशीलचन्द्रसूरिजी म. पासे योगदृष्टिसमुच्चयन अध्ययन करवानुं थयु. आ वखते अमारी पासे बे मुद्रित वाचना हती. १. दिव्यदर्शन ट्रस्ट द्वारा हारिभद्रयोगभारतीमां प्रकाशित २. Prof. L. Suali द्वारा सम्पादित अने
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy