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________________ १५४ अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ है कि उन्होंने अपने प्रभाव एवं उपदेश से ३३००० कुटुम्ब अर्थात् डेढ़ लाख व्यक्ति जैन धर्म में दीक्षित किए थे । सिद्धराज जयसिंह एवं कुमारपाल की राज्यसभा में रहते हुए भी उन्होंने राज्यकवि का सम्मान ग्रहण नहीं किया था। वे राज्यसभा में भी रहे तो केवल आचार्य के रूप में । गुजरात में अहिंसा की प्रबलता का श्रेय आचार्य हेमचन्द्र को ही है । वे केवल पुरातन पद्धति के अनुयायी नहीं थे । जैन साहित्य के इतिहास में 'हेमचन्द्रयुग' के नाम से पृथक् समय अंकित किया गया है तथा उस युग का विशेष महत्त्व है । वे गुजराती साहित्य और संस्कृत के आद्यप्रयोजक थे । इसलिए गुजरात के साहित्यिक विद्वान् उन्हें गुजरात का ज्योतिर्धर कहते हैं । इनके महाकाव्यों की तुलना संस्कृत साहित्य के एक भट्टी काव्य से ही की जा सकती है। किन्तु, भट्टी में भी वह पूर्णता व क्रमबद्धता नहीं जो हमें हेमचन्द्र में मिलती है । मधुसूदन मोदी ने भी हेमसमीक्षा नामक पुस्तक में उनके अपभ्रंश दोहों अत्यधिक प्रशंसा की है । हेमचन्द्र ने अपने समग्र साहित्य में स्थल-स्थल पर समन्वय भावना का व्यवहार किया है । इनके ग्रन्थ निश्चय ही संस्कृत साहित्य के अलङ्कार है । वे लक्षण, साहित्य, तर्क, व्याकरण एवं दर्शन के परमाचार्य हैं । आचार्य हेमचन्द्र के विशालकाय विपुल ग्रन्थसंग्रह को देखकर 'हेमोच्छिष्टं तु साहित्यम्' ऐसा कहा गया है। इस निबन्ध के लेखन में जिन साहित्यकारों, जिन लेखकों, जिन ग्रन्थों विशेषतः डॉ० वि. भा. मुसलगांवकर लिखित 'आचार्य हेमचन्द्र' का उपयोग विशेष रूप से किया गया है, अतएव इन सबका मैं आभारी हूँ । प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
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