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________________ सप्टेम्बर २०१० रोग न लागइ अंगि, रंगिइं सुरवर पई नमई । भमर भमई चहु भंगि, तुह मुह परिमल मिलिय मण ॥४॥ मंस रुहिर तुह वेउ, दुद्धधार जिम हुइ धवल । अंगि न लागइ सेउ, तणु पुणु निम्मल न्हाण ॥५॥ जिण आहार करंत, नवि दीसइ नीहार पुण । चउमुह धम्मु कहंति, वाणी जोजणगामिणिय ||६|| समोसरणि संमाइ, कोडिसंख सुरनर- तिरिय । कांटा ऊंधा थाई, फूलपगर गूडा समउ ॥७॥ एक सरीखी वाणि, पारीछई सुरनर तिरिय । सय- पणवीसपमाण, दह दिसि संकट उपसमई ॥८॥ सातइ ईति समंति, वयरु वली जइ वइरियहं । मारि ण जन मारंति, देसि दुकाल तपइ ( न पइ ?) सरए ||९|| दीसइ गयणि फुरंत, धम्मचक्क तुह जिणप्रवर । भामंडलु झलकंति, सिर पाखलि थिउ संचर ||१०|| परमेसर पयहेठि, सुर संचारइ नव कमल । सत्रु मित्र समदृष्टि, रयणसिंघासण बसणु ए ॥११॥ इंद्र-धजा आकासि, अन प्रभ पाखलि त्रिन्नि गढ । गंधोदक वरिसंति, पुष्पवृष्टि सुरवर करई ॥१२॥ त्रिन्नि प्रदक्षिण दिति, तुह पाखलि सवि पंखियहं । चिहु पखि चमर ढुलंति चेईतरुअर वीरगुणउ ॥१३॥ तरुअर अहलु दुलंति, एव मु फरक्कइ कोमलउ । अनवाई वाजंति, दह दिसि दुंदुहि देवकिय ॥ १४॥ कुसुम तणी परि देह, जनम लगइ परिमल बहुल । कोइ न पामईं छेह, असंख्यात जिणवर गुहं ॥ १५ ॥ अणहूंतइं इक कोडि, समोसरण सुर पामीयए । 2 ६१
SR No.520553
Book TitleAnusandhan 2010 09 SrNo 52
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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