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________________ अनुसन्धान ५२ के तीन प्रकार के गढ़ होते हैं । ८. चतुर्मुखाङ्गता - समवसरण में तीर्थंकर के चार मुख होते हैं । ९. चैत्यद्रुम - अशोक वृक्ष के नीचे भगवान विराजमान होते हैं । १०. कण्टक - भगवान विहार करते हैं तो कण्टक भी अधोमुखी होते हैं। ११. द्रुमानति - विहार करने के समय वृक्ष अत्यन्त झुक जाते हैं । १२. दुन्दुभिनाद - देव दुन्दुभि बजाते रहते हैं । १३. वात - अनुकूल सुख प्रदान करे ऐसी वायु का संचालन होता रहता १४. शकुन - पक्षी भी तीन प्रदक्षिणा करते हैं। १५. गन्धाम्बुवर्त - सुगन्धित पानी की वर्षा होती है । १६. बहुवर्ण पुष्पवृष्टि - पंचवर्ण वाले फूलों की वृष्टि होती रहती है । १७. कच, श्मश्रु, नख-प्रवृद्ध - बाल, दाढ़ी, मूंछ और नखों की वृद्धि नहीं होती है। १८. अमर्त्यनिकायकोटि - तीर्थंकर की सेवा में कम से कम एक करोड़ देवता रहते हैं। १९. ऋतु - सर्वदा सुखानुकूल षड्ऋतुएँ रहती हैं । प्रस्तुत कृति में रचनाकार ने जन्मजात केवलज्ञान और देवकृत अतिशयों का विभेद नहीं किया है। साथ ही क्रम भी कुछ इधर-उधर हैं। फिर भी अपभ्रंश भाषा की यह कृति सुन्दर और सुप्रशस्त है । वीनती इस प्रकार है : नाभिनरिंद मल्हार, मरुदेवि माडिउ उरि रयणु । अविगतरूपु अपार, सामी सेत्रुज सई धणिय ॥१॥ सोवणवन्न सरीर, तिहुअण तारण वेडुलिय । मारि वीडारण वीर, सुणि सामी मुज्झ वीनतीय ॥२॥ जिण अतिसय चउतीस, जे सिद्धतिहिं वण्णविय । ते समरउं निसि दीस, जिम उलग लागइ भलीय ॥३॥
SR No.520553
Book TitleAnusandhan 2010 09 SrNo 52
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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