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एवं देवेन्द्रसंख्यैः कमल दल श्रीमच्छ्रीपार्श्वनाथः प्रकटतरयशा संस्तुतो वीतरागः । भूयाच्छ्रीरत्नसारक्रमणविहितदृग्रत्नहर्षप्रसत्त्या ।
श्री .....
.र्भविकसुरमणिबोधिबीजस्य दाता ॥१७॥
॥ इति चतुःषष्टिदलकमलबन्धस्तवं ॥
द्वात्रिंशद्दलकमलबन्धपार्श्वनाथ स्तव
श्री पार्श्व जिनेश्वर प्रणमउ धरि उल्हास, अद्भुत दहदिसि जसु जसवास । माता जिम पूरइ पुत्र तणी सवि आस, सुप्रसन हुउ साहिब द्यउ मुझ लीलविलास ॥१॥
त...
समतारस - पूरित मूरति पुण्यप्रकास । तरुणी-तरुणीगण देखि न पाम्यउ त्रास, तसु पाय नम.....
सुकाव्यैः ।
इं धन दिन धन ए मास,
..क नास ॥२॥
अनुसन्धान ५२
विषमा अरि जुडिया नही तिलभर अवकास, हिलि हिलि स्वर पूरयउ धरणीनइ आकास । ....षण ज... ण चित्ति विमास, जे वांका वयरी ते पिण थायइ दास ॥३॥
दर आवास ।
समरंतां नासइ रोग भगंदर खास, लहि[यउ]घरि ल मेटइ दुःख दोहग दुरगति दुष्ट प्रवास, रूसइ नवि तूसइ जउ को करइ विणास ||४|
अभ्यास,
दस..
रतर...
यतिवर कमठासुर देखी थयउ उदास ।
सम घनन वरसाव्यउ आव्यउ जल आनास,