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________________ ५० एवं देवेन्द्रसंख्यैः कमल दल श्रीमच्छ्रीपार्श्वनाथः प्रकटतरयशा संस्तुतो वीतरागः । भूयाच्छ्रीरत्नसारक्रमणविहितदृग्रत्नहर्षप्रसत्त्या । श्री ..... .र्भविकसुरमणिबोधिबीजस्य दाता ॥१७॥ ॥ इति चतुःषष्टिदलकमलबन्धस्तवं ॥ द्वात्रिंशद्दलकमलबन्धपार्श्वनाथ स्तव श्री पार्श्व जिनेश्वर प्रणमउ धरि उल्हास, अद्भुत दहदिसि जसु जसवास । माता जिम पूरइ पुत्र तणी सवि आस, सुप्रसन हुउ साहिब द्यउ मुझ लीलविलास ॥१॥ त... समतारस - पूरित मूरति पुण्यप्रकास । तरुणी-तरुणीगण देखि न पाम्यउ त्रास, तसु पाय नम..... सुकाव्यैः । इं धन दिन धन ए मास, ..क नास ॥२॥ अनुसन्धान ५२ विषमा अरि जुडिया नही तिलभर अवकास, हिलि हिलि स्वर पूरयउ धरणीनइ आकास । ....षण ज... ण चित्ति विमास, जे वांका वयरी ते पिण थायइ दास ॥३॥ दर आवास । समरंतां नासइ रोग भगंदर खास, लहि[यउ]घरि ल मेटइ दुःख दोहग दुरगति दुष्ट प्रवास, रूसइ नवि तूसइ जउ को करइ विणास ||४| अभ्यास, दस.. रतर... यतिवर कमठासुर देखी थयउ उदास । सम घनन वरसाव्यउ आव्यउ जल आनास,
SR No.520553
Book TitleAnusandhan 2010 09 SrNo 52
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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