________________
१३०
अनुसन्धान ५२
के 'साडी बळी' आ अने आवा प्रयोगोने जैनो नैगमनयनां उदाहरणो गणे छे.
पूज्य उपाध्याय यशोविजयजी महातार्किक छे. तेमणे जैन मान्यताओना रक्षण अने समर्थनमा पोताना तर्कबळनो उपयोग को छे. तेथी तेमने जैनदर्शनमां ज्यां ज्यां विरोध जणायो त्यां त्यां तेमणे पोतानी तर्कशक्तिथी दूर करवा भरपूर कोशिश करी छे. अने मुनिश्रीओ तेमने टांकीने विरोध दूर करवा प्रयत्न कर्यो छे. पण ते तर्को ग्राह्य छे के नहि ते विचारवू घटे. तर्कजाळमां पड्या विना अने परम्पराप्राप्त मान्यताने बचाववानो आग्रह राख्या विना शुद्धबुद्धिथी मुनिश्री विचारशे तो ते जाते ज उकेलो शोधी शकशे अq सामर्थ्य तेमनामां छे ज. ओक वात तो स्वीकारवी ज रही के तेमणे तर्कोनुं परिशीलन सारं कर्यु छे.
भाववंदना सह, नगीन शाह
श्री नगीनभाईना पत्र-२ना सन्दर्भमां थोडोक ऊहापोह ★ नंबर (१) अने (७)ना समग्र लखाणना सन्दर्भमां
श्रीसिद्धसेनगणि तत्त्वार्थभाष्यटीकामां त्रण जग्याओ (४/१५, ५/२२, ५/३८) काल- निरूपण कर्यु छे. श्री नगीनभाईओ जणाव्युं तेम आ निरूपणमां केटलीक वातो परस्पर विरुद्ध लागे तेवी छे ज. छतांय आ वातो 'अथवा' के 'मतान्तर' जेवा कोईपण उल्लेख वगर सळंग निरूपायेली होवाथी वास्तवमां विरुद्ध न होवी जोइओ, अटले आ वातोनो योग्य रीते समन्वय करवो अत्यन्त जरूरी छे. जैनशास्त्रोमां कालविषयक विचारणाने सांपडेलुं प्रमाणमां ओछु स्थान तेमज श्रीसिद्धसेनगणिनी तत्कालीन शास्त्ररचनाशैलीने अनुसरती समासप्रचुर संक्षिप्त प्ररूपणा आ समन्वयने अघरो बनावे छे. मुद्रित पुस्तकमां अन्यान्य कारणोसर थयेली अशुद्धिओ पण मुश्केलीमां वधारो करे छे. दा.त. ओक ज वाक्य बे जग्याओ आम छपायुं छे: १. सा च सत्त्वापेक्षास्तित्वादेव, भावानामस्तित्वं चाऽनपेक्षमित्युक्तम् (पृ. ३४८) । २. सा च सत्त्वापेक्षा, अस्तित्वादेव भावानाम्, अस्तित्वं चाऽनपेक्षमित्युक्तम् (पृ. ४३२) । ढूंकमां, आ निरूपणने अनुसरीने