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________________ सप्टेम्बर २०१० १२९ ओटले वर्तनाने कालद्रव्यानुगृहीत माननाराओने अलोकाकाशमां पण कालद्रव्य मानवानी आपत्ति आवे. आ सीधी वात छे. जो आकाशमां उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य पराश्रित ज होय स्वाश्रितस्वभावगत-स्वाभाविक न होय तो तेनो सीधो अर्थ अ ज थाय के आकाशमां उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य उपचरित छे, गौण छे, आरोपित छे, मुख्य नथी. अटले आकाशने सत्नुं लक्षण खरा अर्थमां, मुख्यार्थमा लागु न पडे, अर्थात् मुख्यार्थमां आकाश कूटस्थनित्य ठरे अने जैनो कूटस्थनित्यने असत् गणे छे. आकाशमां पण स्वाभाविक परिणमन घटे छे ओम जैनो) मानवू ज पडे, भले पछी तेओ कहे के ते परिणमन सदृश ज थया करे छे जेम मुक्त आत्ममां, के सांख्यो साम्यावस्थामा प्रकृतिमां सदृश परिणमन माने छे तेम. आकाशमां परिणामने केवळ पराश्रित मानतां जैनदर्शननी मूळभूत परिणामवादनी व्यवस्था ज भांगी पडे. अक ज द्रव्यव्यक्तिनो अमुक भाग उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्त होय अने बीजो भाग उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्त न होय अq स्याद्वादीने इष्ट नथी. आनो अर्थ ओ थयो के ते द्रव्य - आकाश अमुक भागे सत् छे अने अमुक भागे असत् छे अर्थात् आकाश अमुक भागे आकाशरूपे सत् छे अने अमुक भागे आकाशरूपे असत्, आकाशने आकाशरूपे सत् अने आकाशरूपे असत् कयो स्याद्वादी माने छे ? आकाशने स्वरूपे सत् अने पररूपथी असत् माने छे. ओक ज दृष्टिले सत् अने असत् मानतो नथी. (८) कागळy उदाहरण मने बंधबेसतुं लागतुं नथी. उपचारथी के व्यवहारमा थता प्रयोग उपरथी तात्त्विक तारण काढी शकातुं नथी. अहीं अवयव-अवयवी के परमाणु-स्कन्ध बाबत अनेक प्रश्नो उपस्थित थाय छे. कागळ परमाणुस्कन्ध छे, स्कन्ध के अवयवीनो नाश क्यारे मनाय ? घटमांथी ओक परमाणु खरीने छूटो पडे अटले घटनाश थयो मानवो ? पर्वतमांथी ओक भेखड छूटी पडे ओटले पर्वतनो नाश मानवो ? गरोळीनी पूंछडी (अवयव) कपाईने छूटी पडे अटले गरोळीनो नाश मानवो ? आ ज नहि पण आवी अनेक समस्याओ अवयव-अवयवी या परमाणुस्कन्ध बाबते ऊठी शके छे, वळी, अहीं ओ नोंधवू जोइओ के साडीनो छेडो ज बळ्यो होय अने कहेवू
SR No.520553
Book TitleAnusandhan 2010 09 SrNo 52
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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