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________________ सप्टेम्बर २०१० १२७ अनन्ततामां पण घटावी शकाय. (५) पुद्गलपरमाणुओ अनन्त छे अटले कालाणुओ अनन्त छे अम उपचारथी कहेवामां आ वात विचारवी पडे - पुद्गलपरमाणुओ अनन्त होवा छतां तेओ स्कन्धरूपे परिणमी असंख्यात आकाशप्रदेशोमां समाइ शके छे ते ज रीते कालाणुनी बाबतमां कहेवू पडे. कालाणुओनो स्कन्ध अटले कालनो तिर्यक्प्रचय. हेमचन्द्राचार्ये उपचरित लोकाकाशप्रदेशस्थ परमाणुओ ज कालाणु छे ओम कडं नथी परन्तु अवो अर्थ तेमांथी काढवामां आव्यो छे. कालोऽप्रदेशी ओनो तो अटलो ज अर्थ थाय के काल अणुपरिमाण छे, अथी विशेष अर्थ काढवानो अधिकार नथी. अने पण नोंधवं जोइओ के ओक ओक पुद्गलपरमाणु ओक ओक आकाशप्रदेश पर रहेलो नथी. तेना तो मोटे भागे स्कन्धो ज होय छे, जेमके अनन्तप्रदेशी महास्कन्ध अर्थात् अनन्त पुद्गलपरमाणुओनो महास्कन्ध. सीधी सादी जे दिगम्बरोनी वात छे तेने जुदी ज रीते अने ते पण अनेक प्रश्नो ऊभा करी जटिल बनावी दे ते रीते घटाववानी शी जरूर? श्रीहेमचन्द्र दिगम्बर मत तेमने ठीक लागवाथी स्वीकारे तो तेमां कंइ बगडी जतुं नथी. ओक वात चोख्खी छे के कालद्रव्यनो स्वीकार न करी अन्य द्रव्योना सूक्ष्म पर्यायोने ज काल मानवो ओ योग्य छे. सूक्ष्म पर्यायो, स्थूळ पर्यायो अने पछी तेनी विविध लांबीढूंकी हारो अने तेमना मापो आ बधांथी कालप्रतीतिनो खुलासो सारी रीते थई शके छे. कल्पना करो के जगतमां कंइ ज परिवर्तन नथी थतुं, तो परिवर्तनरहितता कालप्रतीतिने ऊभी थवा देशे ज नहि. परिवर्तन ज कालप्रतीति, कारण छे. अने आ मत सौथी वधु बुद्धिगम्य लागे छे. अने जो कालने स्वतन्त्र द्रव्य मानवं होय तो तेने अणुपरिमाण के लोकव्यापी ज मानवू पडे, ओ वर्तनाना उपकारक तरीके मानवू पडे. (६) श्वेताम्बर आचार्यो कालने द्रव्य तरीके स्वीकारीने पण जो कालनु कोइ कार्य ज न माने, तेनुं विधायक व्यावर्तक लक्षण ज न कहे तो तेना अस्तित्वना स्वीकार माटे कोई आधार रहेतो नथी. स्थूळ परिणामो, पूर्वापरत्व, दिन, मास आदि समयनी नानीमोटी हारमाळारूप ज छे अने ते
SR No.520553
Book TitleAnusandhan 2010 09 SrNo 52
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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