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अनुसन्धान ५२
प्रत्यधिकरणभावात् स्थालीवत्, कथं पुनरिदमभिधातुं पार्यते - कालाश्रया वृत्तिरिति ? अवधृते हि काले तदाश्रया वृत्तियुज्येत । ननु चात्मादयोऽप्यनवधृतस्वरूपा एव साक्षाद् बुद्धिसुखदुःखादिभिः कार्यैरुभयनिश्चितैरधिगम्यन्ते, दृश्याश्चामी, न चान्यथोपपद्यन्ते, तद्वदेव वर्तना सकलवस्तुव्युपाश्रया, अतोऽस्ति कार्यानुमेयः कालः पदार्थपरिणतिहेतुः ।।
आ जोतां जणाशे के पृ. ३४८मां जे मत आप्यो छे ते बुद्धिगम्य नथी. ३४९-५० पाना पर जे कर्तुं छे ते ज बुद्धिगम्य जैनमत छे.
वर्तना ज मुख्य छे. ते सूक्ष्म प्रतिक्षण थतो परिणाम छे. बाकी स्थूळ परिणाम तो वर्तनाघटित छे अने परत्वापरत्व ओ पण समयोनी लांबीढूंकी हारो छे. नीचेनी बाबत सतत ध्यानमा राखवा जेवी छे. वर्तना = सूक्ष्म परिणाम = प्रतिक्षण उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य = सत् (सत्ता). सर्व भावोनी (वस्तुओनी) वर्तना कालानुगृहीत होई सर्व भावोनी सत्ता पण कालानुगृहीत ज छे. कोइ पण वस्तुनी सत्ता के तेनुं अस्तित्व कालानुगृहीत न होय शक्य नथी. अटले वस्तु मनुष्यक्षेत्रमा होय के तेनी बहार होय परन्तु तेनी वर्तना या तेनी सत्ता कालानुगृहीत ज होय - पछी भले ते लोकाकाश होय, धर्म होय, अधर्म होय के कोइ पण द्रव्य. द्रव्यनी सत्ता कालानुगृहीत मानवी जोईओ. नृक्षेत्रवर्ती काल ओ तो सूर्यगतिथी व्यक्त थतो व्यवहार काल छे, आ वात तत्त्वार्थसूत्र ४.१४१५मां कही छे. अहीं ओ ध्यानमा राखq के वृत्तिना अनेक अर्थो थाय छे जेमांनो ओक छे वर्तना. ओटले वृत्तिनो अर्थ वर्तना (सूक्ष्म परिणाम) अभिप्रेत होवा छतां ते अर्थ छोडी-तोडी अन्य अर्थ लइ मुश्केलीमांथी - संकटमाथी बचवा प्रयत्न करे तो तेणे छलप्रयोग को गणाय. महातार्किको पण आमांथी बची शक्या नथी. छलप्रयोग पकडी पाडवो सहेलुं नथी.
(२) धर्मास्तिकायनी अवगाहना पण अनादि-अनन्त छे, छतां पण तेमां आकाशनो उपकार स्वीकृत छ ज - आ तमारो तर्क योग्य छे.
(३) पुद्गलपरमाणुने ज उपचारथी कालाणु मानवानी वात ओक रीते घटे. पण तो पछी काल पुद्गलने ज लागु पडे, पुद्गलमां ज सीमित थाय.
(४) कालना पर्यायो अनन्त छ, समयो अनन्त छे अने आ अर्थमां काल अनन्त छ : द्रव्य अने पर्यायनो अभेद करी पर्यायोनी अनन्तताने द्रव्यनी