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________________ १२२ अनुसन्धान ५२ पर्यायोमां कालनो उपचार करीओ तो काल सप्रदेशी थई जाय छे, माटे ओ गौणकाल छे, ज्यारे आ परमाणुओमां कालनो उपचार करीओ तो 'काल अप्रदेशी द्रव्य छे' आ वात बराबर घटती होवाथी आ ज मुख्यकाल छे. ___ढूंकमां, दिगम्बरमत प्रमाणे कालाणु स्वतन्त्र द्रव्य छे, ज्यारे श्रीहेमचन्द्राचार्यना मते उपचरित लोकाकाशप्रदेशस्थ परमाणुओ ज 'कालाणु' छे. अटले आ बे मत सरखा नथी. वळी, उत्तराध्ययनसूत्रमा ओक पाठ छे - धम्मो अधम्मो आगासं, दव्वमिक्किक्कमाहियं । अणंताणि य दव्वाणि, कालो पुग्गलजंतवो ॥ (२८/८) आमां कालद्रव्यने अनन्त कडुं छे. हवे जो कालाणुने स्वतन्त्र द्रव्य मानी प्रत्येक लोकाकाश प्रदेशे ओक-ओक कालाणु मानीओ तो काल असंख्य ज थाय, जे विरुद्ध छे. पण जो लोकाकाशमां सर्वत्र पथरायेला अनन्ता पुद्गल परमाणुओमां ज काळद्रव्यनो उपचार करीओ तो 'कालद्रव्य अनन्त छे' ओ वात बराबर संगत थाय छे. * [परन्तु बीजा श्वेताम्बर आचार्यो दिगम्बर मत स्वीकारता नथी. तेमना मते काल अणुरूप नथी. ते समग्र लोकमां आवेलां बधां ज द्रव्योनी वर्तनानुं सहायक कारण होइ समग्र लोकमां व्याप्त छे.] (पृ. ११६ पं. २०) जे श्वेताम्बर आचार्यो कालने स्वतन्त्र द्रव्य तरीके स्वीकारे छे, तेओ कालने वर्तनादिमां अपेक्षाकारण तरीके नथी स्वीकारता, पण प्रसिद्ध स्थूल लोकव्यवहारमात्रथी आ काल ते द्रव्य छे ओम माने छे. अर्थात् तेओनो कालद्रव्यस्वीकार अनपेक्षितद्रव्यनयने अनुसरीने छे. (एकेनपेक्षितद्रव्यास्तिकनयदर्शनाः कालश्च द्रव्यान्तरं भवतीत्याचक्षते । -पृ. ४२९) अटले वर्तना, परिणाम व.ना अपेक्षाकारण तरीके कालद्रव्यनी कल्पना नथी, पण ज्योतिष्चक्रना संचारथी थता रात्रि-दिवस रूप लोकव्यवहारथी सिद्ध ओवा कालनो स्वीकार करीने तेना उपकार तरीके वर्तना व. गणाया छे. १. जो के पाइयटीकामां कालद्रव्यनी अनन्तता अतीत-अनागतकालनी अपेक्षाए घटावी
SR No.520553
Book TitleAnusandhan 2010 09 SrNo 52
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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