SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्टेम्बर २०१० जो आम न मानी तो जेम वर्तनाना अपेक्षाकारण तरीके कालनी कल्पना छे, तेम पूर्व, पर वगेरे व्यवहारना अपेक्षाकारण तरीके दिशा नामना अलग द्रव्यनी कल्पना पण जरूरी बने. अने जो दिग्द्रव्यनुं कार्य आकाशथी ज थई जशे तेम स्वीकारीओ तो कालद्रव्यनुं कार्य पण आकाशथी ज थई जाय ओम केम न बने ? १२३ आ आखी वात उपा. श्रीयशोविजयजीओ द्रव्यगुणपर्यायनो रास, ढाळ १०, गाथा १३ ना टबामां कही छे "तत्त्वार्थसूत्रइं पणि अ २ मत कहियां छई (काल अ पर्याय छे, काल से द्रव्य छे.) कालश्चेत्येके इति वचनात् बीजुं मत ते तत्त्वार्थनइं व्याख्यानइं अनपेक्षितद्रव्यार्थिकनयनई मतई कहिउं छई, स्थूल लोकव्यवहारसिद्ध अ कालद्रव्य अपेक्षारहित जाणवुं. अन्यथा वर्तनापेक्षाकारणपणइ जो कालद्रव्य साधिइं, तो पूर्वापरादिव्यवहारविलक्षण परत्वापरत्वादि नियामकपणइं दिग्द्रव्य पणि सिद्ध थाई. अनइं जो आकाशमवगाहाय, तदन्यया दिगन्यथा । तावप्येवमनुच्छेदात्ताभ्यां वाऽन्यदुदाहृतम् ॥ ( १९/२५) अ सिद्धसेनदिवाकरकृत निश्चयद्वात्रिंशिकार्थ विचारी, आकाशथी ज दिक्कार्य सिद्ध होइ ओम मानिइं, तो कालद्रव्यकार्य पणि कथंचित् तेहथी ज उपपन्न होइ. तस्मात् ‘कालश्चेत्येके' इति सूत्रम् अनपेक्षितद्रव्यार्थिकनयेनैव ।" ★ [अलोकाकाशमां पण वर्तना होवाथी त्यां पण कालद्रव्य होवुं जोइओ] (पृ. ११७ परि. २) १. अलोकाकाशमां जे वृत्ति छे, तेने वर्तना नथी कहेवामां आवती. वर्त्तनानो अर्थ बहु ज स्पष्ट रीते 'कालाश्रया वृत्ति: ' करवामां आव्यो छे. (पृ. ३४९) आने आम विचारी शकाय - घटनुं अस्तित्व कोइ निश्चित देशमां अने निश्चित कालमां होय छे. आमां जे देशसम्बन्धित्व छे तेने अवगाहन कहेवामां आवे छे, के जेमां आकाश उपकारक छे. अने जे कालसम्बन्धित्व छे तेने वर्तना कहेवामां आवे छे, जेमां काल उपकारक छे. मतलब के 'घट आ समये वर्ते छे' आ वाक्यनो विषयभूत पदार्थ वर्तना छे. आ वर्तना बीजुं कशुं नहि, पण घटनी ते वृत्ति ज छे के जेनो आश्रय काल बने छे. हवे ज्यां काल ज न
SR No.520553
Book TitleAnusandhan 2010 09 SrNo 52
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy