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अनुसन्धान ५२
सहभावी होय के क्रमभावी होय पण छेवटे तो परिणामो होवाथी तेमनी उत्पत्तिमां कालद्रव्यने सहायक कारण तरीके कालद्रव्यवादीओ मानशे ज.
नगीन जी. शाह
भाववन्दना (३) श्रीनगीनभाईना पत्रना जवाबमां लखायेल विचारणा
★ [मनुष्यक्षेत्र बहार द्रव्योने वर्तनामां कालनी सहायक कारण तरीके आवश्यकता न होय तो मनुष्यक्षेत्रवर्ती द्रव्योने केम? आवो मत मारा जोवामां क्यांय आव्यो नथी.] (पृ. ११२ पं. ८)
आ मतनां मूळ छेक तत्त्वार्थभाष्य परनी श्रीसिद्धसेनगणिनी टीकामां (पृ. ३४८) सांपडे छे -
__ "अर्धतृतीयद्वीपसमुद्रद्वयाक्रान्तक्षेत्रपरिमाणस्तिर्यग्मानेन पञ्चचत्वारिंशद्योजनलक्षप्रमाणः कालो नाम द्रव्यमिति निरूप्यते-वर्तनादिलिङ्गसद्भावात् ।...." पछी विस्तारपूर्वक 'मनुष्यक्षेत्रनी बहार काल शा माटे न होय ?' ते समजाववानो प्रयत्न कर्यो छे.
वळी, स्वकथननी पुष्टिमां तेओओ ओक साक्षी पाठ पण आप्यो छे के जेनाथी आ मत हजु वधारे प्राचीन होवानुं लागे छे. -
'आह च- "तस्मान्मानुषलोकव्यापी कालोऽस्ति समय एक इह ॥"
★ [वर्तना अनादि-अनन्त छे अटले तेनी उत्पत्ति न होय, तेथी गत्युत्पत्तिना कारण तरीके जेम धर्मास्तिकायनी जरूर छे तेम वर्तनोत्पत्तिना कारण तरीके कालनी जरूर नथी.] (पृ. ११४ फकरो-२)
१. धर्मास्तिकाय गतिर्नु उपकारक कारण छे, नहीं के उत्पादक कारण. "स्वत एव गतिपरिणतिर्येषां द्रव्याणां स्थितिपरिणतिश्च तेषामुपग्राहको धर्माधर्मावपेक्षाकारणमाकाशकालादिवद्, न निर्वर्तकं कारणम्, निर्वर्तकं हि तदेव १. पत्रनां जे विधानो के तात्पर्यो पर विचारणा करवामां आवी छे, ते []मां दर्शाव्यां छे.
तमाम पृष्ठांक तत्त्वार्थभाष्य परनी श्रीसिद्धसेनगणिनी टीका (सं. - हीरालाल रसिकदास कापडीया)ना छे.