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________________ ११८ अनुसन्धान ५२ सहायककारण अलोकाकाशमां पण होवू जोइओ, अन्यथा अलोकाकाश परिणामरहित कूटस्थनित्य बनी जाय. आ प्रश्नने टाळी शकाय नहि अने उडाउ जवाब आपी तेनुं समाधान पण न थई शके. पर्यायो ज काल - पर्यायो या परिवर्तनो ज काल छे. आ सूक्ष्म या स्थूल पर्यायो द्रव्योना छे. जैनो अनेकान्तवादी छे, भेदाभेदवादी छे. आम तेमना मते पर्यायोनो द्रव्यथी कथंचित् अभेद छे, एटले 'द्रव्य नाम गौणीवृत्तिथी या उपचारथी पर्यायोने पण अपाय. परिणामे, काल जे पर्यायोथी अतिरिक्त कंई ज नथी तेने पण द्रव्य कहेवामां आवेल छे. लोकप्रकाश, १८.५.११-१३ नीचे प्रमाणे कहे छे - अत्राऽऽहुः केऽपि जीवादिपर्याया वर्तनादयः । कालमित्युच्यते तज्जैः पृथक् द्रव्यं तु नाऽस्त्यसौ ॥ एवं च द्रव्यपर्याया एवाऽमी वर्तनादयः । सम्पन्नाः कालशब्देन व्यपदेश्या भवन्ति ये ।। पर्यायाश्च कथञ्चित् स्युर्द्रव्याभिन्नास्ततश्च ते । द्रव्यनाम्नाऽपि कथ्यन्ते जातु प्रोक्तं यदागमे । आपणे अगाउ जोइ गया तेम, समय ओ बी कशुं ज नथी पण परमाणुनी ओक आकाशप्रदेश पार करती मन्द गति छे. आवलिका, मुहूर्त, अहोरात्र आदि आ समयोनी ज नानीमोटी शृंखलाओ छे. आम समय, आवलिका आदि पर्यायोनी शृंखलाओ ज छे. जीव अने अजीव द्रव्योना पर्यायो ज काल छे ओवो आ मत वधु सबळ छे अने कालने स्वतन्त्र द्रव्य मानतां जे आपत्तिओनो सामनो करवो पडे छे तेमनो सामनो आ मतने करवो पडतो नथी. टिप्पण १. लोयायासपदेसे इक्केक्के जे ट्ठिया हु इक्केक्का । रयणाणं रासीमिव ते कालाणू असंखदव्वाणि ॥ द्रव्यसंग्रह, गाथा २२ २. सर्वार्थसिद्धि, पृ. ३१२, प्रवचनसारतत्त्वदीपिका, २.४९
SR No.520553
Book TitleAnusandhan 2010 09 SrNo 52
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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