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________________ सप्टेम्बर २०१० ११७ 1 वस्तु तेना तिर्यक्प्रचयने के तेनी अस्तिकायताने भूंसी लोपी शके नहि. (व्यवहारस्तु रूढ्याऽस्तिकायैः पञ्चभिरेव प्रवचने, न चैतावताऽस्तिकायताऽपह्नेोतुं शक्या । – सिद्धसेनगणिकृत तत्त्वार्थटीका पृ. ४३४ ). ( कालद्रव्यमां तिर्यक्प्रचयनुं न होवुं दिगम्बर मतमां घटे छे, श्वेताम्बर मतमां घटतुं नथी.) जो के कालद्रव्य समग्र लोकने व्यापीने रहेलुं छे. तेम छतां सूर्य आदि ज्योतिष्कोनी गतिथी व्यक्त थतो काल या दिन, मास, वर्ष आदि कालविभागो मनुष्यक्षेत्रनी बहार नथी केमके मनुष्यक्षेत्रनी बहार सूर्य आदि ज्योतिष्को नथी. (सूर्यादिक्रियया व्यक्तीकृतो नृक्षेत्रगोचरः । लोकप्रकाश २८.१०५). आपणे जोयुं के कालनो नानामां नानो मेय घटक समय ओटले अक पुद्गल परमाणने मन्द गतिथी ओक आकाशप्रदेशने पार करता लागतो वखत. कालद्रव्यने अनन्त समयो छे. समय से कालद्रव्यनो नानामां नानो घटक होइ तेने कालिक या कालकृत कोइ विभाग नथी, ते निर्विभाग या निरवयव छे. समय कालद्रव्यथी रहित होतो नथी. परन्तु तेमां जे कालद्रव्य समायेलुं छे ते अविभाज्य छे, निरवयव छे. तेथी समयने द्रव्यकृत कोई भाग नथी, निर्विभाग छे, निरवयव छे. परन्तु समय लोकाकाशना असंख्यात प्रदेशोने व्यापतो होइ क्षेत्रनी दृष्टि तेने अवयवो छे, असंख्यात अवयवो छे, ते सावयव छे. वळी समयने अनन्त शक्तिओ छे जेमना वडे ते अनन्त द्रव्योने तेमने अनुरूप विविध परिणामोमां परिणमवा सहायक कारण तरीके कार्य करे छे. ओटले समयने भावनी दृष्टि अवयवो छे, ते सावयव छेर ३. - कालद्रव्यने स्वीकारनार दिगम्बरो अने श्वेताम्बरो बन्नेने अमे नीचेनो प्रश्न पूछीओ छीओ. शुं बधां द्रव्यो उत्पाद-व्यय- - ध्रौव्ययुक्त छे ? अर्थात् वर्तनालक्षण छे ? शुं द्रव्यनो अमुक भाग उत्पाद-व्यय- - ध्रौव्ययुक्त होय अने बाकीनो भाग उत्पाद-व्यय- ध्रौव्ययुक्त न होय अ शक्य छे ? अर्थात् अक द्रव्यनो अमुक भाग वर्तनायुक्त होय अने बाकीनो भाग वर्तनायुक्त न होय अ सम्भवे ? आम तो न मानी शकाय ओटले आकाशना बे भाग लोकाकाश अने अलोकाकाश बन्नेमां सतत सूक्ष्मपरिणमन थया ज करे छे ओम मानवामां आव्युं छे. आकाशद्रव्य सत् छे, तेथी उत्पाद - व्यय- - ध्रौव्ययुक्त छे, वर्तनालक्षण छे. हवे जो अलोकाकाश पण सूक्ष्म परिणामो (वर्तना) धरावतुं होय तो वर्तनानुं
SR No.520553
Book TitleAnusandhan 2010 09 SrNo 52
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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