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अनुसन्धान ५२
पाठमां क्यांक वाचनभूलो रही छे -
पृ. ८३ श्लो० ८ - 'रम्याविधान'ने स्थाने 'रम्यावधानं' पाठ होय. पृ. ८६ पं. ९- 'रोजी' नहि पण 'राजी' होवू घटे. पं. १३- 'इसी' नहि, 'इसा'; पं. १८ 'पे छै' नहि पण ‘पछै' होवू जोईए.
पृ. ७२ परनी ढालमां दरेक कडीना अन्तमां 'क' छे ते पादपूरक छे- देशीनो भाग छे, ते 'क' नहि पण कि/के होवानो सम्भव छे. घणा स्थाने ते अन्तिम शब्द साथे जोड़ाई गयो छे अने तेथी उपवेशक, पेशक, जाणक, वखाणक जेवा भूलभरेला शब्दो सर्जाया छे. आ 'क' ने शब्दथी अलग वांचवो.
शब्दकोश रसप्रद छे. राजस्थानी, गुजराती, संस्कृत, प्राकृत अने ऊर्दूअरेबिक शब्दोनुं आमां मिश्रण छे - जे आ प्रकारनी रचनाओमां ज जोवा मळे. ऊर्दू-अरेबिक शब्दो पाछा भ्रष्ट रूपमा छे जेने ओळखवा माटे ते भाषानो विशेष परिचय आवश्यक थई पड़े. तुररा
तोरा (हार-तोरा) सुबुद्धी
सुविधि (-नाथ) निपट
खरेखर, पूरेपूरुं जगमालम जगतनो मालम-सुकानी
अरेबिक 'जिंदा'- भ्रष्ट रूप होई शके. पोते, पोतानी
जात एवो अर्थ अहीं होई शके. माझी
आनो अर्थ 'अंदर' न होई शके, केमके 'मांहै' साथे छे ज. 'दुर्जन' अर्थ बराबर छे. सुजन-सुयण मळे छे. एना विरोधार्थी तरीके दुयण-दोयण विकस्यो होय.
दाव, लाग फबते
शोभे छे, फावे छे आदरीया- केवटो आदरीया- धर्मनो आदर करनारा, स्वीकारनारा अर्थात्
श्रावको, तेमना केवट-नाविक-पार पहोंचाडनारा.
जिंद
दोयण
डाव