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________________ सप्टेम्बर २०१० १०३ 'श्रावकविधिरास' अपभ्रंशभाषानी सुन्दर कृति छे. आना कर्ता पद्मानन्दसूरि नहि पण गुणाकरसूरि जणाय छे. कृतिपाठ संशोधन भागे छे. वाचनभूलोनुं प्रमाण विशेष छे.क. १५ : 'जाहन'ने स्थाने 'जांह न' क. २० : 'वसाउ' ने स्थाने 'ववसाउ' क. २४ : 'महिं सुद्द' ने स्थाने 'महिसुट्ट' होवानी शक्यता छे. क. ५० : 'सामि धुकरो' नहि, परन्तु ‘सांनिधु करो' पाठ वधु संभवित छे. 'तेजबाईव्रतग्रहण सज्झाय'ना शब्दकोशना केटलाक शब्दो : १. पोति : 'पोतानी झोळीमां-पोतानी पासे' १४. वरसई : एक वर्षमां २०. उपदसी : 'उपदेशी' होई शके. 'बीजाने सलाह आपवामां' एवो अर्थ संभवे छे. २३. संपुन सय्या : ‘पूरी पाथरेली शय्या' ३९. राजकदैवकई : 'आसमानी-सुलतानी'मां ४२. आउलि : आवळ, झाड ५१. आदेशथी : 'पापोपदेश' द्वारा ५७. चूहलेतरूं : चूला मांहेलु ढा. १, क. १७ मां तगरणि छे त्यां 'कारणि' होवू जोईए. 'श्री मल्लिनाथनो रास'मां कवि ऋषभदासनी शैली अने खम्भाती बोलीनी छांट जणाई आवे छे. कविना स्वहस्ते लखेली प्रति परथी आ रचना सम्पादित थई छे ए नोंधनीय छे. पाठमां केटलांक शुद्धिस्थान छे : क. ७८- 'मलीनो हइ लुघ भूप' = 'मली नो-हइलघु भूप' क. १६५ गुणय = गुण यु क. १८४ कुभना = 'कुंभराजाना' एवो अर्थ स्पष्ट छे. पृ. १३१ उपर ढाल शरू थाय छे त्यां देशीनी पंक्ति ढाल साथे भळी
SR No.520553
Book TitleAnusandhan 2010 09 SrNo 52
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages146
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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